Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 40
________________ ८. संवर भावना येन येन य इहास्त्रवरोधः, संभवेनियतमौपयिकेन । आद्रियस्व विनयोद्यतचेता-स्तत्तदान्तरदृशा परिभाव्य॥९७॥ स्वागता अर्थ :- हे विनय ! जिन-जिन नियत उपायों के द्वारा आस्रवों का रोध हो सकता हो, अन्तर्दृष्टि से उनका विचार कर, उद्यत चित्त वाला बनकर उनका आदर कर (उनका उपयोग कर) ॥९७॥ संयमेन विषयाविरतत्वे, दर्शनेन वितथाभिनिवेशम् । ध्यानमार्त्तमथ रौद्रमजस्त्रं, चेतसः स्थिरतया च निरुन्ध्याः ॥१८॥ स्वागता अर्थ :- संयम से इन्द्रिय-विषयों और अविरति को, सम्यक्त्व से मिथ्या आग्रह को तेथा चित्त के स्थैर्य से आर्त और रौद्रध्यान को दबा दो ॥९८॥ क्रोधं क्षान्त्या मार्दवेनाभिमानम्, हन्या मायामार्जवेनोज्ज्वलेन । लोभं वारांराशिरौद्रं निरुन्ध्या, संतोषेण प्रांशुना सेतुनेव ॥ ९९ ॥ शालिनी शांत-सुधारस ४०

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