Book Title: Shant Sudharas
Author(s): Vinayvijay
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 41
________________ अर्थ :- क्षमा से क्रोध को, नम्रता से मान को, निर्मल सरलता से माया को तथा अति उच्च दीवार वाले बाँध (सेतु) सन्तोष से लोभ को दबा दो ॥९९।। गुप्तिभिस्तिसृभिरेवमजय्यान्, त्रीन् विजित्य तरसाधमयोगान् । साधुसंवरपथे प्रयतेथा, लप्स्यसे हितमनहतमिद्धम् ॥१०० ॥ स्वागता अर्थ :- अत्यन्त दुर्जेय मन, वचन और काया के योगों को तीन गुप्ति द्वारा शीघ्र जीत लो और पवित्र संवर के पथ पर प्रवृत्तिशील बन जाओ, जिससे सनातन मोक्ष-सुख प्राप्त हो जायेगा ॥१००॥ एवं रुद्धेष्वमलहृदयैरास्रवेष्वाप्तवाक्यश्रद्धा-चञ्चत्सितपट-पटुः सुप्रतिष्ठानशाली । शुद्धैर्योगैर्जवनपवनैः प्रेरितो जीवपोतः, स्त्रोतस्तीर्वा भवजलनिधेर्याति निर्वाणपुर्याम् ॥१०१॥ मन्दाक्रान्ता अर्थ :- निर्मल हृदय के द्वारा आस्रवों को रोकने पर, आप्त पुरुषों के वाक्यों में श्रद्धारूपी श्वेतपट्ट से सन्नद्ध, सुप्रतिष्ठित जीवरूपी नाव शुद्ध योग रूप वेगवर्द्धक पवन से प्रेरित होता है और संसार-सागर के जल को पारकर निर्वाणपुरी में पहुँच जाता है ॥१०१।। शांत-सुधारस ४१

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