Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 14
________________ श्रद्धा जैन धर्म और जैन दर्शन की ओर स्वाभाविक रूप से अग्रसर हुई। मैंने अपने इतिहास में जैन धर्म और जैन दर्शन की विस्तार पूर्वक व्याख्या की। कुछ वर्षों बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संग्रहालय में हस्तलिखित ग्रन्थों के मंग्रह, मंरक्षण, सम्पादन और प्रकाशन का कार्य भी आरम्भ किया गया। सम्मेलन ने देश के विविध अंचलों में बिखरे ग्रन्थ-रत्नों को संग्रह करने और उन्हें शोधार्थी विद्वानों एवं अध्येताओं को सुलभ करने के उद्देश्य से इस महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य को हाथ में लिया। विविध राज्यों से पांडुलिपियाँ प्राप्त होने लगीं। सब से अधिक पांडुलिपियाँ ग्वालियर (म०प्र०) में प्राप्त हुई । वहाँ के सम्भ्रान्त नागरिक श्री मूरजगज धारीवाल ने परिश्रम पूर्वक विपुल धन व्यय करके जो बृहत् और दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह किया था, वह हिन्दी साहित्य सम्मेलन को भेंट-स्वरूप प्रदान कर दिया। यह मंग्रह धारीवाल दंपति के नाम से 'मूरज-सुभद्रा कक्ष' में व्यवस्थित किया गया। इस बृहत् ग्रन्थ-संग्रह का विवरण प्रस्तुत करने के लिए शिक्षा-मंत्रालय (भाग्न सरकार) तथा साहित्य सम्मेलन ने मुझे आदेश दिया और एक वर्ष तक निरंतर कार्य करते हुए मैंने 'हस्तलिखित हिन्दी ग्रंथों की विवरणात्मक सूची तैयार की। यह सूची शिक्षा-मंत्रालय की वित्तीय सहायता से 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की ओर से प्रकाशित की गई। इम विवरणान्मक सूची में हस्तलिखित ग्रन्थों का सम्पूर्ण योग २८०२ है। इनमें जन अध्यात्म के ७७, तंत्र-मंत्र के हैं, जैन तीर्थों के २८, नीति-उपदेश के १६. प्रश्नोत्तरी के १२. पूजा के ५०, आरती के ६, नमस्कार के ४, वंदना के ६, विनती के ६, व्रत माहात्म्य के २४, श्रावकाचार एवं मनोरथ के ७३, सिझाय के ६. नीर्थ-स्तवन के २२, तीर्थंकर-स्तवन के २३८, स्तुति के ४४, निमाणी के ७, और स्तोत्र के १७ ग्रन्थ मिले। इनके अतिरिक्त जैन दर्शन के ७२, जैन साहित्य के १११, गीतों के १२, बारामासा और फाग के ८, तथा स्फुट काव्य के ६८ ग्रन्थ प्राप्त हुए। इस भाँति २८०२ ग्रन्थों में १००६ ग्रन्थ तो जैन अध्यात्म और दर्शन पर ही हैं। इस बृहत् माहित्य का विवरण लिखने में सचमुच ही मैं जैन धर्म के मानवतावादी दृष्टिकोण में अत्यधिक प्रभावित हुआ। १०

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