Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 44
________________ जय वर्षमान मुमिव : तो आज मे कुमार वर्धमान का नाम 'वीर वर्धमान' होना चाहिए। विजय : मैं तुमसे पूर्ण सहमत हूँ, मुमिन ! हमारे कुमार वीर वर्धमान हैं। मुमित्र : नो अब हम लोग चलें । महाराज मिद्धार्थ वीर वर्धमान की प्रतीक्षा कर रहे होंग । नागरिकों ने उन्हें सूचना दे दी होगी कि किस तरह उन्होंने एक मतवाले हाथी को बिना किसी शस्त्र के अपने वश में कर लिया। वे वास्तव में वीर हैं। विजय : अवश्य । चलिए कुमार वीर वर्धमान ! (सब चलने को उचत होते हैं किन्तु विजय एक वृक्ष की ओर देखकर रुक जाता है।) विजय : (चौंक कर) अरे, यह देखो ! सुमित्र : क्यों ? क्या है ? विजय : अरे, उम पेड़ की जड़ की ओर देखो ! सुमित्र : ओह ! भयानक सर्प ! कितना बड़ा सर्प है ! हटो-हटो-पीछे हटो, विजय ! वर्धमान : (विजय से) पीछे क्यों हट रहे हो ! देखो, वह सर्प कहाँ जाता है । विजय : (पर कर) जायगा कहाँ ? वह हम लोगों को डमने के लिए आ रहा है। समित्र : ओह ! उमने कितना भयानक फन फैला रखा है ! कुमार वर्धमान क्षमा करें, इच्छा होती है कि इसके फन को अपने एक ही बाण से बेध हूँ। विजय : और यदि लक्ष्य चूक गया तो वह इस तरह झपट पड़ेगा कि भागने का मार्ग भी नहीं मिलेगा। सुमित्र : तुम जानते हो, विजय ! मेरे बाणों का लक्ष्य अचूक होता है । जो दूमरों के प्राण लेता है. उसे माग्ने में हिमा नहीं होगी । कुमार वर्धमान मुझे क्षमा करें ! मैं लक्ष्य लेता हूँ। (धनुष पर बाण संधान करता है।)

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