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पहला अंक (नेपथ्य में उल्लास को ध्वनि--धन्य है ! धन्य है ! धन्य है ! कुमार वर्षमान की जय! कुमार वर्षमान की जय!
कुमार वर्धमान को जय !) विजय : यह जय-ध्वनि कैसी ? सुमित्र : कुमार वर्धमान की जय ? वहाँ हाथी निरीह जनता को कुचल रहा
होगा, यहां कुमार वर्धमान पहुंचे और उनकी जय बोली जा रही है ! विजय : (विवश होते हुए) कुछ समझ में नहीं आ रहा है । सुमित्र : चलो, हम लोग चलकर देखें कि बात क्या है। विजय : कुछ अच्छी ही बात होगी । चलो, हम लोग भी जय-ध्वनि में सम्मिलित
हों। (चलने को उद्यत होते हैं, तमोरो नागरिक शीघ्रता से आते हैं।) एक भत्रिय कुमारों को प्रणाम ! आप लोग कुमार वर्धमान के साथी हैं ? सुमिन्न : हाँ, नागरिक ! किन्तु कुमार वर्धमान कहां हैं ? दूसरा : धन्य हैं, कुमार वर्धमान ! साधु ! साधु ! वे जनता के बीच में हैं।
चारों ओर से उन पर पुष्प वर्षा हो रही है। विजय : (कुबहल से) पुष्प-वर्षा ? कैसे ? किसलिए? और वह हाथी ? सुमित्र : वह पागल हाथी जो गज-शाला से छूट कर लोगों को कुचलता हुआ
आ रहा था? पहला : उसी पागल हाथी को तो कुमार ने एक क्षण में अपने वश में कर
लिया । मुमित्र : वश में कर लिया ? कैसे? क्या उन्होंने धनुष-बाण का प्रयोग किया ? दूमरा : नहीं, श्रीमन् ! वे धनुष-बाण अवश्य लिये हुए थे किन्तु उन्होंने
धनुष-बाण तो मुझे दे दिया और हाथी के सामने निर्भयता से पहुंच गये।
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