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जय वर्धमान
गिरिसेन : मम्राट् ! सावधान तो गजाध्यक्ष भी या किन्तु
सिद्धार्थ : (बीच ही में ) सावधान ? सावधान होने का यह अर्थ है कि दुर्घटनाएँ घटित होती रहें और नगर-रक्षक उन पर नियन्त्रण न रख सकें ? बादल चारों ओर में घिरे हों और बिजली टूट कर पृथ्वी को ध्वस्त कर दे ? सावधान रहने का क्या यह अर्थ है ?
गिरिमेन : सम्राट् ! अपराध क्षमा हो । गजाध्यक्ष हाथी को स्नान करा रहा
था।
सिद्धार्थ : इस तरह स्नान करा रहा था कि इन्द्रगज निरीह जनता को रक्त से स्नान करा दे ?
गिरिमंन: मम्राट् ! ऐसी संभावना नहीं थी किन्तु उसी समय किसी अज्ञात दिशा में आया हुआ बाण इन्द्रगज को लगा और वह विचलित होकर एक दिशा की ओर भागा। गजाध्यक्ष ने बहुत प्रयत्न किया किन्तु वह उमे वश में करने में असफल रहा। वह गज उत्तर की ओर वेग से दौड़ पड़ा
सिद्धार्थ : ओर नगर - रक्षक कहाँ थे ?
गिरिसंन : वे कुमार वर्धमान के क्रीड़ा क्षेत्र की सुरक्षा में व्यस्त थे ।
सिद्धार्थ : और यहाँ इन्द्रगज के वेग से नागरिक क्षत-विक्षत होते रहे !
गिरिसेन : अधिक नहीं, सम्राट् ! गज के मुक्त होने की सूचना पाकर कुछ नगररक्षकों ने इन्द्रगज के जाने की दिशा मोड़ दी जिससे वह नगर के निर्जन प्रान्तर की ओर जाय और इस कारण
( नेपष्य में जय घोष - 'कुमार वर्धमान की जय ! जय ! जय !'
सिद्धार्थ : यह कैसा जय घोष ?
गिरिसेन : मैं अभी जाकर देखता हूँ। (शीघ्रता से प्रस्थान )
सिद्धार्थ : ( और भी अशान्त होकर टहलते हुए) इन्द्रगज मुक्त होकर नागरिकों
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