Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 63
________________ तीसरा अंक आरम्भ कर दे । अवन्ति कुमारी है न ? सुन्दर अवश्य है किन्तु ऐसी सुन्दरता भी क्या जो मन के भाव प्रकट न कर सके । विशला : इन तीनों में तो यही अच्छी है । अच्छा, इस चौथे चित्र को देख ! ये कुक्कुट नरेश की राजपुत्री हैं। सुनीता : (देख कर) कुक्कुट नरेश की ? इनको कहीं दाना नहीं मिल रहा है। ये किसी नगर-वधू को अपदस्थ कर सकती हैं। विशला : नगर-वधू ? इस राजकुल में कोई नगर-वधू ? सुनीता! सावधान ! ऐसे शब्द मुख से निकालती है ? अच्छा, इन चम्पा कुमारी जी को देखो ! सुनीता : महारानी ! यह चित्र सब से सुन्दर है। नासिका उठी हुई, नेत्रों में शील, ओंठ जैसे मधु-वर्षण के लिए खुलने ही वाले हैं। त्रिशला : इसे अलग रख लेती हूँ। (वह चित्र अलग रखती है।) अच्छा, ये मंडलेश्वर की पुत्री हैं। इन्हें देखो ! सुनीता : ये भी अच्छी हैं, महारानी ! इनके मुख के चारों ओर जो ज्योति-मण्डल है उससे ज्ञात होता है कि ये शची की पुत्री जयंती हैं। मानवी में देवी। इन्हें भी अलग रख लीजिए, स्वामिनी ! त्रिशला : अच्छी बात है। (उस चित्र को भी अलग रखती हैं।) आहा, इन्हें देख ! (एक चित्र उठाते हुए) ये कलिंग-कन्या हैं, शत्रुजिन् की पुत्री। मुनीता : साधु ! ये तो सभी राजकुमारियों में श्रेष्ठ हैं, महारानी ! आहा ! ऐसा लगता है कि यदि प्रतिपदा का चन्द्र इनके सौन्दर्य की कलाओं को धारण कर ले तो वह पूर्णिमा का चन्द्र बन जायगा। नेत्र इतने सौम्य हैं कि लगता है इनके चारों ओर श्वेत कमल की वर्षा हो

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