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तीसरा अंक
(परदा उठने के पूर्व नेपथ्य से चर्या-पाठ)
अप्पणछा परट्ठा वा कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया नो वि अन्नं वयावए ॥
(दशवकालिक ६-१२)
[अर्थात् स्वयं के लिए अथवा दूसरों के लिए, क्रोध अथवा भय से
दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाला असत्य वचन, न तो स्वयं बोलना चाहिए और न दूसरों से बुलवाना चाहिए।]