Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 83
________________ चौथा अंक कि जम्बू द्वीप में एक-से-एक गुणशीला सुन्दरियाँ हैं, उनके बीच में मेरी क्या गिनती किन्तु सुख और आनन्द का प्रवाह तो मेरे नगर में बहना था — मेरे हृदय में बहना था। और उस सुख के प्रवाह ने मुझे आपके चरणों तक पहुँचा दिया । वर्धमान : तुम्हारे सुख से मैं भी सुखी हूँ, यशोदा ! किन्तु मैं समझता हूँ कि तुमसे विवाह कर मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है । यशोदा : अन्याय कैसा, देव ! यह कहिए कि आपने मुझे कितना सौभाग्यशालिनी बनाया है? आपने मेरे साथ विवाह करने की स्वीकृति देकर मेरे जन्म-जन्मान्तर के मनोरथ पूरे किये हैं। मैंने स्वामी आदिनाथ के चरणों में न जाने कितनी पुष्पांजलियाँ अर्पित कर प्रार्थना की कि मुझे आपकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो और स्वामी आदिनाथ ने मेरी प्रार्थना स्वीकार की। अब मैं आपकी हूँ, आप मेरे हैं। जब मैं यह सोचती हूँ तो मेरा मन उसी प्रकार नृत्य करने लगता है जिस तरह इस कक्ष में यह ( मयूर को संकेत करते हुए) मयूर नृत्य कर रहा है । स्वामी आदिनाथ की बड़ी कृपा है कि मेरी प्रार्थना स्वीकार हो गई। वर्धमान : तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार हुई, यह अच्छा हुआ या बुरा, यह तो स्वामी आदिनाथ ही जानें। मैं कुछ नहीं समझ सका । किंशुक वृक्ष के फूल लाल होते हैं । यह कौन जानता है कि फूलों की लालिमा उसका शृंगार है या उसके हृदय की लगी हुई आग है । यशोदा : लालिमा तो अनुराग का रंग है, स्वामी ! पूर्व में उपा आती है तो जैसे वह सिन्दूर से शृंगार कर आकाश पर अवतरित होती है। मेरी आरती के थाल में अभि तक लाल रंग धारण कर आरको परिक्रमा करती है | वर्धमान : किन्तु वह जन्नती भी तो है । ७६

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