Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 40
________________ जय वर्धमान विजय : निर्भयता मे पहुँच गये ? तब हाथी ने क्या किया ? मुमित्र : वह तो दौड़ता हुआ आ रहा होगा? पहला : भयानक आंधी की तरह। जैसे एक गरजता हुआ काला वादल भूमि पर उतर आया है। उसके पैरों की धमक मे पृथ्वी कांप रही थी। वह पेड़ों को इस तरह उखाड़ देता था जमे चुम्बक पन्थर लोहे को अपनी ओर खींच लेता है और आंखें तो इस तरह लाल थीं जैसे दो दहकते हुए अंगारे रखे हों। विजय : मे भयानक हाथी के मामने पहुंचना कितने साह्म का काम था ! दूसग : ओह ! कुमार में कितना साहम था ! और उनकी आँखों में कितना आकर्षण था! पहला : श्रीमन् ! कुमार दोनों हाथ फैला कर उस हाथी के मार्ग में खड़े हो गये । जैसे ही हाथी ने क्रोध से अपनी मुंड आगे बढ़ायी वैसे ही कुमार ने उसे पकड़ कर अपने सामने कर लिया और उस पर पैर रखकर वे विद्युत गति से उसके मस्तक पर बैट गये। उन्होंने न जाने किम नगह हाथी के कानों को सहलाया कि जो गजराज दो क्षण पहले क्रोध से पागल हो रहा था, वह कुमार को अपने मस्तक पर पाकर तुरन्त ही शान्त हो गया। मुमित्र : (आश्चर्य से) शान्त हो गया ? आश्चर्य ! महान् आश्चर्य ! दूमरा : शान्त ही नहीं हो गया, वह अपनी सूंड उठा कर प्रणाम की मुद्रा में खड़ा हो गया। विजय : सचमुच ! कुमार वर्धमान में अपार साहम और शक्ति है । पहला : माहम और शक्ति ही नहीं, श्रीमन् ! लगता है, उनमें कोई दिव्य विभूति जगमगा रही है । उनको सामने देखकर बड़े से बड़ा क्रोधी शान्त हो जाता है।

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