Book Title: Jay Vardhaman
Author(s): Ramkumar Varma
Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan

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Page 71
________________ तीसरा अंक सिद्धार्थ : त्रिशला ! शान्त हो जाओ। (विशलाके कन्धे पर हाथ रखते हैं, विराला और जोर से सिसकने लगती है और सिखाप के कन्धे पर सिर रख लेती हैं।) शान्त ! शान्त ! त्रिशला ! तुम जाकर विश्राम करो। वर्धमान से मैं बातें करूंगा। (विशला सिसकते हुए भीतर चली जाती हैं।) मिद्धार्थ : (वर्धमान को देख कर) तो तुमने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया । क्या तुम मां की ममता नहीं जानते, वर्धमान ? मां का हृदय एक सरोवर है जिसमें वात्सल्य के कमल खिला करते हैं। यदि उत्तप्त वायु में वे कमल मुरझा जाये तो क्या सरोवर की शोभा नष्ट नहीं हो जायगी ? नुम बहुत ज्ञानी हो, क्या तुम अपने ज्ञान से मां के वात्सल का रूप नहीं देख सकते ? (वर्धमान चुप रहते हैं।) मिद्धार्थ : तुम चुप क्यों हो? गजवंश में विवाह की एक स्वस्थ परम्परा है। वर के लिए अच्छी से अच्छी वधू देखी जाती है । रूप, शील, मर्यादा और वंश की पवित्रता के आधार पर दो वंश वायु की लहरों की भांति मिलते हैं और यश की सुरभि का संचार होता है। पति और पत्नी ऐम मंमार का निर्माण करते हैं जिसके मामने स्वर्ग भी फीका पड़ जाता है और तुम यह जानने हो कि गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। वर्धमान : पिता जी ! क्षमा करें । आपको मारी बात नीमत हैं किन्तु मन की प्रवृत्ति सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। मिद्धार्थ : किन्तु प्रवृत्ति की अधिकारिणी तो बुद्धि है और उसके भी अधिकारी तम हो। इस अधिकार को संगठित करने की आवश्यकता है किन्तु ज्ञात होता है कि तुम्हें यह संगठन स्वीकार नहीं है । कुछ दिनों से मैं ऐम ही लक्षण देख रहा हूँ। तुम्हारी अवस्था मात्र बीस वर्षों की है

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