Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 13
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23 (अलोलुपता), क्षमा, शक्ति अनुसार दान, भक्ति) सहित विशुद्ध परिणामों से उन उत्तम मुनिवरों को विधिपूर्वक दिया । ( अभी उन्हें खबर नहीं आहारदान है कि जिन्हें आहारदान दिया वे उनके अपने पुत्र ही थे ।) मुनिराज के आहारदान का वह भव्य आनन्दकारी प्रसंग था । H 3908 11 उस उत्तम आहारदान के प्रभाव से तुरन्त ही वहाँ पाँच आश्चर्यजनक वस्तुएँ प्रगट हुईं - (१) आकाश से रत्नवृष्टि होने लगी (२) पुष्प वर्षा होने लगी (३) सुगन्ध बरसने लगी (४) दुंदुभि आदि बाजे बजने लगे और (५) आकाश में देवगण "अहो दानं.... महादानं" ऐसे शब्दपूर्वक जयजयकार करने लगे । आहार के पश्चात् वे मुनियुगल को विदा करके वापस आ रहे थे, तब उन्हें अपनी एक वृद्ध दासी से ज्ञात हुआ कि यह तो हमारे ही सबसे छोटे युगल पुत्र हैं। भले ही यह रिस्ता गृहस्थ अवस्था का था, पर साक्षात् मोक्षमार्ग के रूप में उनको देखकर राजा-रानी का हृदय अत्यन्त प्रमुदित हो उठा । धर्मोपदेश सुनने की भावना से वे सभी पुनः वहीं मुनिराज के समक्ष बैठ गये । पश्चात् राजा वज्रजंघ ने पूछा प्रभो ! ये मतिवर मंत्री, आनंद पुरोहित, धनमित्र सेठ और सेनापति अकम्पन ये चारों मुझे अतिप्रिय

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