Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 की प्रतीक्षा करते हुए वैराग्यमय जीवन बिता रही है। बैशाख शुक्ला दशमी के सायंकाल आकाश में अचानक हजारों-लाखों देव-विमान देखकर उसे आश्चर्य हुआ....वे सभी महावीर भगवान का जय-जयकार करते हुए जा रहे थे। चन्दना तुरन्त समझ गई कि महावीर को केवलज्ञान हो गया है...और उसी का उत्सव मनाने यह देवगण जा रहे हैं। अहा! महावीर अब परमात्मा बन गये ! इसप्रकार चन्दना के हर्षानन्द का पार नहीं है। सारे नगर में आनन्द के बाजे बजवाकर उसने प्रभु के केवलज्ञान का मंगल उत्सव मनाया। पश्चात् बड़ी बहिन मृगावती को साथ लेकर वह राजगृही - वीर प्रभु के समवसरण पहुँची....और उन वीतरागी वीर परमात्मा को देखकर स्तब्ध रह गई। राजकुमार महावीर ने जो आत्मानुभूति प्राप्त कराई थी, उसका उसे स्मरण हुआ और तुरन्त वैसी अनुभूति में पुनः पुनः | उपयोग लगाकर अन्तर की विशुद्धता को बढ़ाया।
प्रभु की स्तुति की, वहाँ विराजमान मुनिवरों को वन्दन किया और प्रभु चरणों में आर्यिका के व्रत धारण किये....कोमल केशों का लोंच किया, और अन्तर के वैराग्य से बाहर श्वेत परिधान में भी वह सुशोभित हो उठी, अब राजसी परिधानों का क्या काम ? अभी कुछ दिन पूर्व भी सिर मुडाए बन्धन में पड़ी थी....और आज स्वेच्छा से सिर मूडकर वह मोक्षमार्ग में प्रयाण कर रही है। ..
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