Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 36
________________ 34 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 तोड़ डालूँगी। महावीर प्रभु के दर्शन मात्र से मेरे बाह्य बन्धन छूट गये तो अन्तर में चैतन्य प्रभु के दर्शन से भवबन्धन भी टूटने में अब क्या विलम्ब ? सारी कौशाम्बी नगरी उमड़ पड़ी है महावीर मुनिको पारणा करानेवाली उन चन्दना देवी के दर्शन करने तथा उन्हें अभिनन्दन देने को। अहा, आज तक जिसे हम दासी समझते थे वह तो भगवती देवी निकली। उन्होंने वीर प्रभु को पारणा कराके अपनी कौशम्बी नगरी का सम्मान बढ़ाया और उसे विश्व प्रसिद्ध कर दिया। अपनी नगरी में वीर प्रभु का आहार नहीं होने का जो कलंक लग रहा था उसे आज चन्दना ने आहारदान देकर मिटा दिया। बहुतों को तो आश्चर्य हो रहा था कि आहारदान और किसी के हाथ से नहीं, एक दासी के हाथ से हुआ। अरे नगरजनो! कलंकतो तुम्हारी नगरी में चन्दनाजैसी सती दासीरूप में बिकी उसका था....प्रभु महावीर ने उस दासी के ही हाथ से पारणा करके वह कलंक मिटा दिया।....दासी प्रथा दूर कर दी....मनुष्य, मनुष्य को बेचे वह कलंक धो दिया; तथा यह भी प्रचारित किया कि धर्मसाधना में धनवान होने का कोई महत्त्व नहीं है....सद्गुणों का महत्त्व है। महावीर मुनि के आहार के समाचार सुनकर कौशाम्बी की महारानी मृगावती भी वहाँ आ पहुँची और उन्हें यह जानकर अपार हर्ष हुआ कि मुनिराज का पारणा उनकी बहिन चंदना के ही द्वारा हुआ है। फिर वे सेठ वृषभदत्त का धन्यवाद कर बहिन चंदना को अपने घर ले गईं। फिर क्या हुआ - यह जानने के लिए आगामी कथा का वाचन करें। परेशानियों से बचने के लिए दुर्जनों और भौतिक साधनों का आश्रय लेना ऐसा है, जैसे सुरक्षा के लिए चूहा, बिल्ली की शरण ले। - ब्र. रवीन्द्रजी आत्मन्

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