Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23
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हुआ और वह चक्र अपने नये स्वामी त्रिपृष्ठ के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा । तुरन्त वही चक्र क्रोधावेश में त्रिपृष्ठ ने अश्वग्रीव पर फेंका। उस चक्र ने अश्वग्रीव की ग्रीवा को छेद दिया और वे त्रिपृष्ठ वासुदेव के रूप में प्रसिद्ध हुए ।
त्रिपृष्ठ वासुदेव ने विजय बलभद्र सहित त्रिखण्ड के राज्य का दीर्घकाल तक उपभोग किया। पिता प्रजापति ने दीक्षा ग्रहण कर केवलज्ञान प्रगट प्रकार करके निर्वाण प्राप्त किया ।
त्रिपृष्ठ कुमार निदानबंध के कारण विषयों के ध्यान सहित निद्रावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ और सातवें नरक में जा गिरा । तीव्र विषयाशक्तिजनित पापफल में वह जीव असंख्यात वर्ष के महाभयानक दुःखों को प्राप्त हुआ ।
अपने भाई त्रिपृष्ठ की मृत्यु होने पर विजय बलभद्र छह मास तक उद्वेग में रहे, पश्चात् वैराग्य प्राप्त जिनदीक्षा धारण की ओर मोक्ष पद प्राप्त किया ।
सदा साथ रहने वाले दो भाई, उनमें से एक ने मोक्षसुख प्राप्त किया और दूसरे ने विषय - कषायवश सातवें नरक के घोर दुःख पाये ।
इससे परिणामों की विचित्रता तथा उनका विचित्र फल सहज ही ख्याल में आता है । अतः हमें अपने परिणामों को सदा स्वाश्रित ही रखना चाहिए, पराश्रित परिणाम नियम से दुःखदायी होता है ।
विश्वनंदि आदि में ऐसा बैरभाव किस कारण हुआ यह जानने के लिए आगामी कथा का स्वाध्याय अवश्य करें ।
आवश्यकता से अधिक कमाना भी भूख से अधिक खाने के समान हानिकारक है ।
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ब्र. रवीन्द्रजी 'आत्मन्'