Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
यह सुनकर दो देवियाँ उनकी परीक्षा करने के लिये पृथ्वी पर आईं और उन्हें ध्यान से डिगाने के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के हाव-भाव दिखा कर उपद्रव करने लगीं - ऐसे भयंकर दृश्य उपस्थित किये तथा मनोहर हाव-भाव गीत-विलास, आलिंगनादि कामवर्धक काम चेष्टायें कर करके उन्हें ध्यान से च्युत करने का निरर्थक प्रयास करने लगीं; क्योंकि मेघरथ तो मेरू समान अचल ही रहे। परमात्म तत्त्व के आनंद में लीन मानो वे ऐसे लग रहे थे मानो उपसर्ग के कारण वस्त्रों से ढंके कोई निर्णंथ मुनिराज ही खड़े हो। अंत में देवियों ने अपनी हार स्वीकार कर उन्हें वंदन किया, क्षमायाचना की और उनकी स्तुति करके स्वर्ग चली गईं। रात्रि व्यतीत होते ही मेघरथ ने निर्विघ्न रूप से अपना कायोत्सर्ग पूर्ण किया।
अहा ! शील तो स्वभाव का नाम है तथा जो स्वभाव के आश्रय में ही सच्चा सुख मानते हों और स्वभाव का ही आश्रय लिए हों, उन्हें यह बाह्य जड़ विलासिता अपने स्वभाव से कैसे डिगा सकती है? फिर भी स्वभाव न जाननेवाले अज्ञानी यह समझकर व्यर्थ ही दुःखी होते हैं कि हम अपनी इस विलासिता से किसी को भी ध्यान से च्युत कर देंगे। परन्तु भाई ! अपने स्वरूप से तो वे ही च्युत होते हैं, जो स्वरूप को परिपूर्ण अनुभव नहीं करते और पर से पूर्ण करना चाहते हैं।
___ महारानी प्रियमित्रा की रूप-प्रशंसा-मेघरथ की महारानी प्रियमित्रा वे भी धर्म साधना में साथ दे रही हैं, वे शीलवती, गुणवती