Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 60
________________ 58 ..... जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 विद्युच्चर मुनिराज का संघ सहित समाधिमरण जम्बूस्वामी तो क्षपकश्रेणी की तैयारी कर मोक्ष जाने हेतु एकाकी ध्यान में लीन हो गये और एकादश अंग के धारक आचार्य विद्यच्चर मुनिराज संघ सहित आगमानुसार विहार करते हुए एक दिन मथुरा नगर के उद्यान में पधारे। साथ में 500 से भी अधिक मुनिवरों का संघ है। सभी मुनिराज तल्लीनता पूर्वक निजात्मा में बारम्बार उपयोग ले जाकर शाश्वत आनंद का रसपान कर रहे हैं। इसी बीच एक दिन चंद्रमारी नाम की कोई वनदेवी आकर प्रणाम करके कहती है - "हे गुरुवर ! आज से लेकर पाँच दिन तक यहाँ भूतप्रेतादि आकर आपके ऊपर घोर उपसर्ग करेंगे, जिसे आप सहन नहीं कर सकेंगे, इसलिये आपको यहाँ से विहार कर जाना ही श्रेष्ठ होगा।" मोक्षसुख के अभिलाषियों के लिए आत्मानंद के उपयोग के सामने उपसर्ग परीषह क्या मायने रखते हैं? फिर भी गुरुराज का कर्तव्य है कि वे संघस्थ मुनिराजों को विपत्ति का ज्ञान करावें, जिससे सभी के भावों का पता चल सके इसलिये श्री विद्युच्चर मुनिराज ने अपने संघ को कहा – यहाँ पाँच दिन तक घोर उपसर्ग होगा, इसलिए अपने को अन्यत्र विहार करना योग्य रहेगा। तब मेरू समान अचल सभी मुनिवरों ने हाथ जोड़कर गुरुराज से कहा-“हे गुरुवर! हम सभी को वैराग्य की वृद्धि में हेतुभूत उपसर्गों पर विजय प्राप्त करना ही श्रेष्ठ है। कायर बनकर उपसर्गों से दूर भागना वीतराग मार्ग के साधकों को योग्य नहीं है प्रभो ! “आचार्य श्री विद्युच्चर मुनिराज सहित सभी मुनिवर कायोत्सर्ग धारण कर निर्भयी आत्मा में विचरने लगे।"

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