Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 77
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23 “मेरा भाई जीवित है”- यह जानकर उन्हें अति हर्ष हुआ । ऐसे महान हर्षपूर्वक उन्होंने अपने भाई के साथ शौरीपुर में प्रवेश किया। कुछ समय पश्चात् शंख मुनि का जीव स्वर्ग से आकर वसुराज की रानी रोहिणी की कुक्षि से नौवें बलभद्र के रूप में जन्मा । 75 यद्यपि बलदेव बलभद्र के जन्म के तत्काल बाद उनके साथी नारायण कृष्ण के जन्म का वर्णन करना चाहिए था । तथापि कृष्ण की माँ देवकी कंस की बहिन थी, इसलिए कंस का वर्णन प्रसंग प्राप्त जानकर पहले कर रहे हैं। कंस कौन था तथा उसने अपने ही पिता को जेल में क्यों डाला और अपनी ही बहिन के पुत्रों को मारने का दुस्साहस क्यों किया ? यह सब जानने के लिए अब पढ़िये. - मथुरा में राजा कंस राज्य करता था । कंस का जीव पूर्वभव में वसिष्ठ नाम का बाबा था, परन्तु जैन मुनियों के उपदेश से धर्म प्राप्त करके वह जैन साधु हो गया था और एक-एक महीने के उपवास करता था । तब मथुरा के राजा उग्रसेन ने अविचारी भक्ति से ऐसी आज्ञा की कि इन मुनि को मासोपवास का पारणा में ही कराऊँगा, दूसरा कोई न करावे; परन्तु मुनिराज जब पारणे हेतु नगर में पधारे तब राजमहल में हस्ती, अग्नि आदि का उपद्रव होने से राजा उन्हें पारणा नहीं करा सके। इसप्रकार मासोपवासी वसिष्ठ मुनि पारणा किये बिना तीन बार लौटे। जब उन्हें पता चला कि उग्रसेन की आज्ञा के कारण ही ऐसा हो रहा है, तब उनके मन में राजा के प्रति बैरभाव जाग्रत हो उठा और वे विवेक को चूरकर धर्मभ्रष्ट होकर ऐसा निदानबंध कर बैठे कि मैं तप के प्रभाव से अगले भव में उग्रसेन राजा का पुत्र होकर इसका राज्य छीन लूँ और इसे कारागृह में डालूँ। बस हो चुका निदानबंध और वसिष्ठ मुनि का जीव मरकर मथुरा नगरी में उग्रसेन राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम कंस था। उसके अशुभ लक्षण देखकर राजा उग्रसेन ने उसे मथुरा

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