Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 26
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 हुए इस उदय के खेल को देखते हुए समताभाव धारण किये हुए थी। वेश्या आतुरतापूर्वक प्रतीक्षा कर रही है कि कोई बड़ा ग्राहक आये तो उसे बेचकर धन कमा लूँ। इतने में एक बड़े सज्जन सेठ वहाँ से निकले। बाजार में खड़ी हुई चन्दना का रूप देखकर वे आश्चर्यचकित हो गये। अरे, राजकुमारी समान यह कन्या यहाँ कैसे आई होगी ? जो दासी के रूप में बेची जा रही है। संकटग्रस्त होने पर भी आत्मतेज-सम्पन्न उसकी मुखमुद्रा से सेठ को ऐसा लगा कि यह अवश्य कोई संस्कारी कुलवान कन्या है; इसके मुख पर किंचित् विषय-लालसा नहीं है। फिर भी बीच बाजार में वेश्या के रूप में बिक रही है.... अवश्य ही इसमें कोई रहस्य होना चाहिये। इस कन्या को मैं इस संकट से बचा लूँ ताकि यह किन्हीं दुष्टों के चंगुल में न फँस जाए - ऐसा विचार करके सेठ उसके पास गये और पूछताछ करने लगे। उन सज्जन सेठ को वहाँ देखकर नगरजनों के आश्चर्य का पार नहीं रहा!....अरे, नगर के यह महान श्रावक धर्मात्मा सेठ वृषभदत्त भी इसके सौन्दर्य पर मोहित हो गये, 'किन्तु यह असम्भव है!'....तो फिर किसलिये वे यहाँ आकर बात कर रहे हैं ? इसप्रकार लोगों में भिन्न-भिन्न प्रकार का कौतुहल फैल गया। सेठ वृषभदत्त निकट आकर चन्दना को देखने लगे। वह धीमे-धीमे कुछ बोल रही थी....उसके मुँह से निकलते हुए शब्द सुनकर सेठ एकदम चौंक पड़े....अरिहन्त....अरिहन्त....। अरे, यह तो णमोकार' मंत्र जप रही है....अवश्य ही यह कोई उच्च संस्कारी जैन कन्या है, जो ऐसे घोर संकट के समय नमस्कार मंत्र का जाप कर रही है। धन्य है इसे !....मेरे कोई सन्तान नहीं है, मैं इसे घर ले जाऊँगा और अपनी पुत्री के रूप में पालन करूँगा। ऐसा सोचकर सेठ ने उसे खरीद लेने का निश्चय किया और वेश्या को मुंहमांगी स्वर्ण मुद्राएँ देकर चन्दना को ले लिया। धन्य है उनका धर्म वात्सल्य। घर में प्रवेश करते ही सेठ ने कहा - पुत्री ! तुम किसी उच्च कुल

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