Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
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शुक्लध्यान द्वारा पूर्ण वीतरागता एवं सर्वज्ञता प्रगट कर हितोपदेश देने लगे। ऐसे घनरथ तीर्थंकर अनेक वर्षों तक भव्यजीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देकर अंत में चार अघाति कर्मों का नाश कर मुक्ति को प्राप्त हुए।
कबूतर और गिद्ध की घटना-महाराज मेघरथ राज्य का संचालन कर रहे थे इतने में एक आश्चर्यजनक घटना हुई, अचानक वहाँ एक कबूतर आया, वह भय से काँप रहा था, उसके पीछे एक भयंकर गिद्ध पड़ा था।
गिद्ध मनुष्य की भाषा में बोला – हे महाराज ! आप दयालु हैं, दानेश्वर हैं, मैं बहुत भूखा हूँ और माँस ही मेरा भोजन है इसलिये वह कबूतर मुझे दे दीजिये। नहीं तो मैं भूख से मर जाऊँगा। आपको कबूतर की रक्षा | करना हो तो उसके वजन का माँस मुझे अपने शरीर से काट दीजिये।
मेघरथ ने अवधिज्ञान से सब जान लिया और कबूतर व गिद्ध के साथ-साथ अपनी राजसभा को संबोधित करते हुए बोले – ये दोनों जीव पूर्वभव में वणिक पुत्र थे और सगे भाई थे, ये अत्यंत लोभी थे इसलिए धन के लिये लड़े और एक-दूसरे को मारकर कबूतर तथा गिद्ध हुए हैं। पूर्वभव की बात सुनकर उन दोनों पक्षियों का चित्त शांत हुआ।