Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 को सरसों का दाना भी चुभता था, सहन नहीं होता था, फिर उन्हें स्यालनी का भखना कैसे सहन हो गया ?
चित्रसेना ने अपने को संयोगों और कर्मोदय से भिन्न न जानकर सोमिला भाभी से बदला लेने का निदान बंध कर लिया।
इधर सोमिला को उसके पति शिवभूति ने बहुत डाटा फटकारा, अपनी नाराजगी व्यक्त थी, पर उसने उसे समझाकर शांत कर दिया।
कालान्तर में इन तीनों जीवों की भवान्तर की यात्रा आरम्भ हुई। जिसमें सोमिला और शिवभूति तो प्रायः परस्पर मिलते रहे, पर चित्रसेना के बीच के भवों का विशेष वर्णन नहीं मिलता।
सोमिला क्रमशः कनकलता, पद्मलता के भव पूरे कर राजा चेटक की सातवीं पुत्री चंदनबाला हुई। (इनके भवों की विशेष जानकारी के लिए उत्तरपुराण, सर्ग-75, श्लोक 75 से 182 देखें।)
शिवभूति क्रमशः महाबल, नागदत्त और अंत में मनोवेग विद्याधर हुआ। जब शिवभूति, मनोवेग के भव में था और सोमिला चंदनबाला के भव में थी, तभी चित्रसेना कौशाम्बी नगर श्रेष्ठी वृषभसेन की भार्या सुभद्रा हुई। इधर चंदनबाला को मनोवेग पूर्व के स्नेह एवं मोह के कारण अपहरण कर ले गया और पत्नी के भय से उसे एक अटवी में छोड़ गया। वहाँ भील ने उसका शील भंग करना चाहा, पर जब वह शील भंग करने में सफल न हुआ तो कुछ पैसों के लोभ में उसे कौशाम्बी के वैश्या बाजार में बेचने ले आया। चंदनबाला का पुण्य जाग्रत हुआ और उसी समय कौशाम्बी नगर के श्रेष्ठी श्री वृषभसेन उसे खरीद कर बेटी बनाकर अपने घर ले आये।
बस ! चित्रसेना का जीव जो कि श्रेष्ठी वृषभसेन की पत्नी सुभद्रा के रूप में यहाँ मौजूद था और पूर्व में निदान बंध किया था कि मैं भी इसे कलंकित करूँगी। यद्यपि उसे यह सब पता नहीं था, पर कर्म की प्रेरी उस सुभद्रा सेठानी के मन में क्रमशः संशय का बीज पनपता