Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23
दूसरे रूप नहीं होता; क्योंकि यदि आसानी से होने का विधान होता तो चंदनबाला का वह कलंक लगानेवाला कर्म भी बदल जाता जबकि राजा चेटक की बेटी, महारानी त्रिशला, महारानी चेलना, महारानी मृगावती जैसों की बहिन होने का लाभ तो मिला, लेकिन उस कष्ट और कलंक से नहीं बच सकी। पर ध्यान रहे, कोई भी कर्म आत्मा को दुखी करने में समर्थ नहीं है, कर्म के उदय में चंदनबाला की तरह ज्ञानी उसके भी ज्ञाता रहकर सुखी हो जाते हैं और अज्ञानी चित्रसेना की तरह उससे जुड़कर अर्थात् अपने दुख का कारण उसे या उससे प्राप्त संयोगों को मानकर वर्तमान में दुखी होते हैं और आगामी दुखों को आमंत्रण देते हैं ।
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अतः हमें निरन्तर सावधान रहना चाहिए, छोटी-छोटी बातों को अपने चित्त से नहीं लगाना चाहिए, तत्त्वज्ञान के बल से उन्हें उदयजनित जानकर उनका ज्ञाता रहते हुए प्रतिक्षण भवकटी पुरुषार्थ जागृत करते रहकर मनुष्य भव के बहुमूल्य क्षणों को सार्थक करना चाहिए, बाकी संयोगों एवं पर्यायों का क्या ? आज हैं कल नहीं, पर हमारा भगवान आत्मा तो शाश्वत सुखमयी तत्त्व है । आज तक अपने विपरीत विचारों से उसकी विराधना करके दुख भोगा है।
अब यदि अपने को संसार समुद्र में नहीं डुबोना चाहते हो तो चित्रसेना की तरह विपरीत विचार न करके चंदनबाला की तरह सम्यक् विचार करें, तो अवश्य ही भवसागर से पार हो सकते हैं।
चंदनबाला ने तीर्थंकर भगवान महावीर के समवसरण में जाकर अर्जिका की दीक्षा ली और 36000 आर्यिकाओं में श्रेष्ठ गणिनी पद को सुशोभित किया एवं अन्त में पर्याय पूर्ण होने पर समाधि पूर्वक मरण कर अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुई |