Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 आदि) हुए वे दान की ही महिमा को प्रकट करते हैं। अब मुनिराज ऋषभदेव के तीर्थ में मुनि आदि पात्र सर्वत्र फैल जायेंगे, जहाँ-तहाँ मुनि विचरेंगे; इसलिए हे राजर्षि भरत! दान की विधि जानकर आपको भक्तिपूर्वक उत्तम दान देना चाहिये।
इसप्रकार दान का उपदेश देकर श्रेयांसकुमार ने दान-तीर्थ का प्रवर्तन किया। राजा श्रेयांस के श्रेयकारी वचन सुनकर भरत राजा को अत्यन्त प्रीति उत्पन्न हुई और उन्होंने अति हर्षपूर्वक राजा सोमप्रभ तथा श्रेयांसकुमार का सम्मान किया। पश्चात् परमगुरु ऋषभदेव के गुणों का चिन्तन करतेकरते वे अयोध्यापुरी लौटे।
इसी क्रम में चंदनबाला के जीवन में घटी अनेक घटनाओं का वर्णन करते हुए उनके द्वारा हुए श्री वर्धमान मुनिराज के आहार/पारणा की कथा से भी आपका परिचय कराना चाहते हैं, इसके लिए आप आगामी कथा अवश्य पढ़ें।
केवलज्ञान की श्रद्धा के बल पर साधक को अहंकार और विषाद नहीं होता। भूतकाल बीत गया, उस काल में जो भी हुआ, वह वैसा ही होना था; ऐसा ही केवली के ज्ञान में झलका है। भविष्यकाल में भी जो होगा वह भी केवली के ज्ञान में वैसा ही शेयरूप में आया है। वर्तमानकाल जो सामने हैं, उसमें घट रही घटनाओं के हम मालिक न बनें; अपितु उन्हें कर्म का कार्य जानकर मात्र ज्ञाता-दृष्टा रहे।
जैन कथा संग्रह भाग-४/१२४