Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 45
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 सब आयु से जीवित रहें - यह बात जिनवर ने कही। जीवित रखोगे किस तरह जब आयु दे सकते नहीं ?251 सब आयु से जीवित रहें यह बात जिनवर ने कही। कैसे बचावें वे तुझे जब आयु दे सकते नहीं ?252 मैं सुखी करता दुःखी करता हूँ जगत में अन्य को। यह मान्यता अज्ञान है क्यों ज्ञानियों को मान्य हो ?253 हैं सुखी होते दुःखी होते कर्म से सब जीव जब । तू कर्म दे सकता न जब सुख-दुःख दे किस भाँति तब ।।254 हैं सुखी होते दुःखी होते कर्म से सब जीव जब । दुष्कर्म दे सकते न जब दुःख दर्द दें किस भाँति तब ?255 हैं सुखी होते दुःखी होते कर्म से सब जीव जब । सत्कर्म दे सकते न जब सुख-शांति दें किस भाँति तब ?256 'मैं सुखी करता दुखी करता' यही अध्यवसान सब । पुण्य एवं पाप के बंधक कहे हैं सूत्र में ।। 260 'मैं मारता मैं बचाता हूँ' यही अध्यवसान सब । पाप एवं पुण्य के बंधक कहे हैं सूत्र में ।।261 मारो न मारो जीव को हो बंध अध्यवसान से । यह बंध का संक्षेप है तुम जान लो परमार्थ से ।।262 इस ही तरह चोरी असत्य कुशील एवं ग्रंथ में। जो हुए अध्यवसान हों वे पाप का बंधन करें ।।263 ये भाव अध्यवसान होते वस्तु के अवलम्ब से । पर वस्तु से ना बंध हो हो बंध अध्यवसान से।।265 जिय बँधे अध्यवसान से शिवपथ-गमन से छूटते। गहराई से सोचो जरा पर में तुम्हारा क्या चले ?267 इस कथानक से यह बात सहज ही समझ लेना चाहिए कि चाहे पुण्यकर्म हो या पापकर्म हो, आसानी से कोई भी संक्रमित होकर एक

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