Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ 77 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 उग्रसेन को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया और मथुरा के राज्य पर अधिकार कर लिया। पश्चात् राजा कंस ने अपने उपकारी वसुराज को मथुरा बुलाकर उनका सम्मान किया और अपनी बहिन देवकी का उनसे विवाह कर दिया। ___ एकबार राजा कंस के महल में अतिमुक्तक मुनि (उनके भाई) आहार लेने आये, तब कंस की रानी जीवद्यशा ने उन मुनि की तथा उनकी बहन देवकी की हँसी उड़ाकर अनादर किया। इससे क्रोधावेश में वे मुनि वचनगुप्ति भूल गये और उनसे भविष्यवाणी हो गई कि अरे ! जीवद्यशा ! तू अभिमान के कारण जिसकी हँसी उड़ा रही है उस देवकी बहन का पुत्र ही तेरे पति तथा पिता का (कंस-जरासंध) घात करेगा। इससे कंस भयभीत हो गया और “देवकी बहन के पुत्रों को जन्मते ही मार डालना” – ऐसे दुष्ट आशय से उसने बहिन देवकी को अपने घर ही रखने का वचन वसुराज से ले लिया। अहो ! जिन मुनिराज के आहार कराने से पंचाश्चर्य होते हैं, जीव के भव सीमित रह जाते हैं और वे मुनिराज तो स्वयं मोक्ष प्राप्त कर ही लेते हैं परन्तु यहाँ क्या हुआ? वे अतिमुक्तक मुनिराज भी अपने स्वरूप को भूलकर उनकी भविष्यवाणी कर बैठे और कंस भी यह सुनकर वैराग्य को प्राप्त नहीं हुए, बल्कि अपनी ही बहिन के उन पुत्रों को मारने की ठान बैठे, जो अब कभी भी नहीं मरने वाले हैं अर्थात् चरमशरीरी है /इसीभव से मोक्ष जाने वाले हैं। ___ अत: कंस उन्हें मार तो नहीं पाया, पर मारने का भाव करके स्वयं प्रतिक्षण तो भावमरण करता ही रहा और अंत में द्रव्यमरण करके नरकादि गति को प्राप्त हुआ। अतः हे भव्य ! “जीव कभी मरता ही नहीं है" - ऐसा निर्णय कर मरणभय से मुक्त हो, ताकि सदा के लिए पर्यायमरण से भी मुक्ति मिले।

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84