Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 68
________________ 66 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 मनुष्य दुखी और तिर्यंच सुखी (भगवान शांतिनाथ पूर्वभव दूसरा) पुण्डरीकिणी नगरी के महाराजा घनरथ के पुत्र मेघरथ (शांतिनाथ) और दृढरथ कुमार (गणधर चक्रायुद्ध) हुए। वे दोनों भाई आत्मज्ञानी, एवं शांतपरिणामी थे। दो मुर्गों के उद्धार का प्रसंग-एक बार घनरथ राजसभा में सपरिवार बैठे थे। धर्म चर्चा चल रही थी कि अचानक उस चर्चा में भंग पड़ गया, क्योंकि महाराजा घनरथ की दृष्टि दो लड़ते हुए मुर्गों पर पड़ी, दयालु महाराजा ने तुरन्त उन दोनों का युद्ध रोकने की भावना से पुत्र मेघरथ को पूछा – हे मेघरथ ! इन दोनों मुर्गों को एक-दूसरे के प्रति इतना बैर भाव क्यों है ? तब अवधिज्ञानी मेघरथ कुमार ने कहा – ये दोनों मुर्गे पूर्वभव में सगे भाई थे, परन्तु एक बैल के स्वामित्व को लेकर दोनों में लड़ाई हुई और दोनों ने एक-दूसरे को मार डाला। फिर दोनों जंगली हाथी हुए, भैंसा हुए, मेंढे हुए और परस्पर लड़-लड़ कर मरते रहे। अब वे दोनों भाई इस भव में मुर्गे होकर लड़ रहे हैं। कषाय के संस्कार जीवों को कितना दुःख देते हैं? कषाय से छूटे तभी जीव को शांति मिलेगी। दोनों मुर्गे भी अपने पूर्वभवों की बात सुनकर एकदम शान्त हो गये, जातिस्मरण ज्ञान हुआ, आँखों से अश्रुधारा बहने लगी, बैर भाव दूर हो गया और अहिंसक भाव पूर्वक शरीर का त्यागकर व्यन्तर देव हुए। यहाँ विचारणीय विषय यह है कि मनुष्य पर्याय में अविवेक और कषायवश बैल के पीछे लड़ मरे; न बैल मिला, न मनुष्यभव रहा, फलस्वरूप अनेक दुर्गतियों के दुःख और भोगने पड़े। और मुर्गे की

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