Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23
आहारदान की अनुमोदना का फल जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र के पुष्कलावती देश की उत्पलखेटक नगरी के राजा वज्रबाहु के यहाँ भावी तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के जीव ने वज्रजंघ के रूप में जन्म लिया।
जब पिता महाराज वज्रबाहु को वैराग्य हुआ, तब उन्होंने वज्रजंघ का राज्याभिषेक कर उन्हें राज्य सौंपकर जिनदीक्षा ले ली। ____ अब उत्पलखेटक नगर का न्याय-नीति से राज्य करते हुए राजा वज्रजंघ सुखपूर्वक रह रहे थे। एक दिन उन्हें समाचार मिला कि उनके ससुर वज्रदंत चक्रवर्ती की कमल पुष्प में आसक्त भंवरे की मृत्यु देखकर वैराग्य परिणति उग्र हुई और वे जिनदीक्षा लेकर वन को चले गये हैं। दीक्षा लेने से पूर्व उन्होंने अपने 1000 पुत्रों को बुलाकर उन्हें राज्य देने की भावना व्यक्त की; परन्तु एक-एक करके सभी पुत्रों ने राज्य लेने से इंकार कर दिया और सभी ने उनके ही साथ दीक्षा लेने की भावना व्यक्त की।
इसलिए अन्त में पुण्डरीक नामक छोटी उम्र के पौत्र को राज्य भार सौंपकर वज्रदन्त चक्रवर्ती ने साठ हजार रानी, बीस हजार राजा तथा एक हजार पुत्रों सहित जिनदीक्षा धारण कर ली। यहाँ राजमाता लक्ष्मीमती को चिन्ता हुई कि पुण्डरीक तो अभी छोटा बालक है, वह इतने बड़े राज्य का भार कैसे सम्हाल सकेगा ? इसलिये उन्होंने उत्पलखेटक नगर सन्देश भेजकर राजा वज्रजंघको सहायतार्थ बुलवाया। सन्देश मिलते ही राजा वज्रजंघ पुण्डरीकिणी नगरी जाने के लिये तैयार हुए। मतिवर मंत्री, आनन्द पुरोहित, धनमित्र सेठ और अकम्पन सेनापति - इन चारों ने भी वज्रजघ राजा के साथ प्रस्थान किया। रानी