Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 14
________________ 12 .-जैनधर्म की कहानियाँ भाग-23 हैं - इसका क्या कारण हैं ? तब दमधर मुनिराज ने कहा – पूर्वभवों में जब तुम प्रीतिवर्धन राजा थे और तुमने आज ही की तरह वन में मुनिराज को आहार दान दिया था, तब मतिवर मंत्री का जीव सिंह था। आहारचर्या देखकर सिंह को जातिस्मरण हो गया। जिससे वह बिल्कुल शान्त हो गया और आहारादि का त्याग करके एक शिला पर जा बैठा। ____ मुनिराज ने अवधिज्ञान द्वारा यह जानकर प्रीतिवर्धन राजा से कहा- हे राजन् ! यह सिंह श्रावक के व्रत धारण करके संन्यास ले रहा है, तुम्हें इसकी सेवा करना योग्य है; भविष्य में यह भरतक्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का पुत्र होगा और चक्रवर्ती होकर उसी भव में मोक्ष प्राप्त करेगा। मुनिराज की बात सुनकर राजा ने सिंह को प्रेम से देखा और उसके कान में नमस्कार मंत्र सुनाया। अठारह दिन की सल्लेखना के पश्चात् शरीर का त्याग करके वह सिंह दूसरे स्वर्ग का देव हुआ और वहाँ से चलकर यह मतिवर मंत्री हुआ है। उस सिंह के अतिरिक्त प्रीतिवर्धन राजा के सेनापति, मंत्री और पुरोहित - इन तीनों ने भी आहारदान का अनुमोदन किया था, इसलिए ये भोगभूमि में जन्म लेने के बाद में दूसरे स्वर्ग के देव हुए। तुम्हारी (वज्रजंघ की) ललितांगदेव की पर्याय में वे तीनों तुम्हारे ही परिवार के देव थे और वे ही यहाँ तुम्हारे पुरोहित, सेठ और सेनापति हुए हैं। भविष्य में तुम तीर्थंकर होओगे तब वे भी तुम्हारे पुत्र होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। उनमें से अकम्पन सेनापति तो बाहुबली होंगे, आनन्द पुरोहित तथा धनमित्र सेठ दोनों क्रमश: वृषभसेन तथा अनन्तविजय नामक तुम्हारे पुत्र होकर फिर तुम्हारे ही गणधर होंगे। इसप्रकार उन मुनिवरों ने वज्रजंघ को उनके मंत्री, पुरोहित, सेठ और सेनापति के पूवभवों का सम्बन्ध सुनाया। मुनिराज के श्रीमुख से अपना ऐसा महान भविष्य सुनकर उन सबको बड़ा हर्ष हुआ। जब

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