Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|इमस्स चेवं जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाईमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव तसकायसत्थं समारभति अण्णेहिं वा तसकायसत्थं समारंभावेइ अण्णे वा तसकायसत्थं समारभमाणे समणुजाणइ. तं से अहियाए तं से अबोहीए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्टाय सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवंति एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खलु मारे एस खलु णरए, इच्चत्थं गड्ढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकायसमारंभेणं तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसंति । ५३ । से बेमि अप्पेगे अच्चाए हणंति अध्पेगे अजिणाए वहंति, अप्येगे मंसाए वहंति, अप्येगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए, दाढाए हाए हारुणीए अट्ठीए, अट्ठिमिं जाए अट्ठाए अणट्टाए● | अध्पेगे हिंसिंसु मेत्ति वा वहंति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहंति अपपेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वर्हति । ५४ । एत्थ सत्थं समारभमाणस्स |इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्ते आरंभा परिण्णाया भवन्ति, तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं | तसकायसत्तं समारंभेज्जा णेवऽण्णेहिं तसकायसत्थं समारंभावेज्जा णेवऽण्णे तसकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा. जस्सेते तसकायसत्य | समारंभा परिण्णाया भवंति से ह मुणी परिण्णायकम्मेत्तिबेमि । ५५ । अ० १३० ६ ॥
पहू एजस्स (य एगस्स पा० ) दुर्गुछणाए । ५६ । आयंकदंसी अहियंति णच्चा, जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ जे बहिया जाणड़ से अज्झत्थं जाणए, एयं तुलमन्नेसिं । ५७ । इह संतिगया दविया णावकंखंति जीविउं । ५८ । लज्जमाणे पुढो पास पू. सागरजी म. संशोधित
॥ श्री आचाराङ्ग सूत्रं ॥
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