Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जात्र अणुगामियंतिबेभि । २१९ । अ० ८ ३० ६ ॥
जे भिक्खु अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ चाएमि अहं तणफासं अहियासित्तए सीयफासं अहियासित्तए फास अहियासित्तए दंससगफासं अहियासितए एगयरे अन्नतरे विरूवरूवे फासे अहिया सित्तए, हिरिपडिच्छायणं चऽहं नो नचाएमि अहिआत्तिए एवं से कप्पेड़ कडिबंधणं धारितए । २२० । अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसन्ति सीयफासा फुसन्ति ते फासा फुसन्ति दंसमसगफासा फुसन्ति एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ अचेले लाघवियं आगममाणे जाव | समभिजाणिया । २२१ । जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ अहं च खलु अनेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्टु दलइस्सामि आहंड च नो साइज्जिस्सामि २ जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ-अहं च खलु० असणं वा ४ आहट्टु नो दलइस्सामि आहडं च साइज्जिस्सामि ३ जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ अहं च खलु अत्रेसिं भिक्खूणं असणं वा ४ आहट्टु नो दलइस्सामि आहडं च नो साइज्जिस्सामि ४, अहं च खलु तेण अहाइरित्तेण अहेसणिज्जेण अहापरिग्गहिएणं असणेण वा ४ अभिकङ्घ साहम्मियस्स कुज्जा वेयावडियं करणाए, अहं वावि तेण अहाइरित्तेण अहेसणिजेण अहापरिग्गहिएणं असणेण वा पाणेण वा ४ अभिकङ्क्ष साहम्मिएहिं कीरमाणं वेयावडियं साइज्जिस्सामि | लाघवियं आगममाणे जाव सम्मत्तमेव समभिजाणिया । २२२ । जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ से गिलाभि खलु अहं इमम्मि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए से अणुपुव्वेणं आहारं संवट्टिज्जा २ कसाए पयणुए किच्चा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू
॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥
४०
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147