Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाइज्जा अहापरिग्गहियं वत्थंधारिज्जा जाव गिम्हे पडिक्ने अहापरिजुनं वत्थं परिविजा २ त्ता अदुवा एगसाडे अदुवा अचेलेलापवियं आगममाणे जावसम्मत्तमेव समभिजाणीया । २१५। जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ एगे अहमंसि, न मे अस्थि कोई,न याहमति कस्सवि, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा, लावियं आगममाणे तवे से अभिसमनागए भवइ जाव समभिजाणिया|| १२१६।से भिक्खू वा भिक्खुणीवा असणंवा ४ आहारेमाणे नोवामाओ हणुयाओ दाहिणंहणुयं संचारिजाआसाएमाणे, दाहिणाओ. वामं हणुयं नो संचारिज्जा आसाएमाणे (आढायमाणे पा०) से अणासायमाणे लाधवियं आगममाणे तवे से अभिसमत्रागए भवइ, जमेयं भगवया पवेइयं तमेवं अभिसम्चिा सव्वओ सव्वत्ताए सम्मत्तमेव अ(सम) भिजाणिया । २१७। जस्म णं भिक्खुस्स एवं भवइ से गिलामि च खलु अहं इमंमि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए से अणुपुव्वेणं आहारं संवट्टिजा, अणुपुब्वेणं आहार संवट्टित्ता कसाए पयणुए किचा समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिवुडच्चे १२१८। अणुपविसित्ता गाम वा नगरं वा खेडं वा कब्बडं वा मडंबं वा पट्टणं वा दोणमुहं वा आगरं वा आसमं वा सत्रिवेसं वा नेगर्भ वा रायहाणिं वा तणाई जाइज्जा, तणाई जाइत्ता/ से तमायाए एगंतमवक्कभिजा २ ता अध्यंडे अप्यपामे अव्यबीए अध्यहरिए अप्पोसे अभ्योदए अप्पुत्तिंगयमगदगमट्टियमकडासंताणए पडिलेहिय २ पमजिय २ तणाई संथरिजा तणाई संथरित्ता इत्थवि समए इत्तरियं कुज्जा तं सच्चं सच्चवाई ओए तिने छिनकहंकहे आईयडे अगाईए चिच्चाणभेरं कायं संविय विरूवरूवे परीसहोवसग्गेअस्सिं विस्संभणया भेवमणुचिन्ने, तत्थावितस्सकालपरियाए। ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र। | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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