Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से भिक्खुवा० से जं पुण, आमडागंवा पूइपित्रागंवा महं वा मजवा सप्पिंवा खोलंवा पुराणगंवा इत्थ पाणा अणुप्पसूयाइं जायाई संवुड्ढाई अव्वुकताई अपरिणया इत्थपाणा अविद्धत्था नो पडिगाहिजा । २६९१से भिक्खू वा० से जं० उच्छुमेरगंवा अंककरेलगंवा कसेरुगंवा सिंघाडगंवा पुइआलुगंवा अन्नयरं वा से भिक्खू वा २ से जं उप्पलं वा उपलनालं वा भिसंवा भिसमुणालं वा पुक्खलं वा पुक्खलविभंग वा अन्यरं वा तहप्पगारं । २७० से भिक्खू वा २ से जं पु० अग्गबीयाणि वा मूलबीयाणि वा खंधबीयाणि वा/ पोरबी, अग्गजायाणि वा मूलजा, खंधजा, पोरजा, नन्नत्थ तकलिमत्थएण वा तक्कलिसीसेण वा नालियेरमत्थएण वा खजूरिमथएण/ वा तालम, अन्नयरं वा तह । से भिक्खु वा २ से जं० उच्छु वा काणगं वा अंगारियं वा संमिस्सं विगदूमियं वित (त्त) गगं वा कंदलीउसुगं अनयरं वा तहप्या(सेभिक्खू वा० से जं० लसुणंवा लसुणपत्तं वाल० नालं वाल० कंदं वाल० चोयगंवा अन्नयरं वा०)से भिक्खू वा० से जं० अच्छियं वा कुंभिपक्कं तिंदुगंवा वेलुगंवा कासवनालियं वा अन्नयरं वा तहप्पगारं आमं असत्थप से भिक्खू वा० से जं० कणं वा कणकुंडगंवा कणपूयलियं वा चाउलं वा चाउलपिटुं वा तिलं वा तिलपटुंवा तिलपप्पडगं वा अनयरं वा तहथ्यगारं आभं असत्थप लाभे संते नो ५० एवं खलु तस्स भिक्खुस्स, सामग्गियं । २७१। अ० १ ३०८॥ इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया सड्ढा भवंति गाहावई वा जाव कम्मकरी वा, तेसिंच एवं वृत्तपुव्वं भवइ जे इमे भवंति समणा भगवंतो सीलवंतो क्यवंतो गुणवंतो संजया संवुडा बंभयारी उवया मेहुणाओ, धम्माओ, नो खलु एएसिं कप्पइ आहाकम्भिए ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147