Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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वा से.मत्ते विष्परियासियभुए इथिविगहे वा किलीबे वा तं भिक्खं उसंकभित्तु बूया आउसंतो समा अहे आरामंसि वा अहे||| उवस्मयंसि वा राओ वा वियाले का गामधमनियंतियं कटु रहस्सियं मेहुणधम्मपरियारणाए आउट्टामो, तं चेवेगईओ सातिजिजा, अकरणिज चेयं संखाए एएआयाणा (आयतणाणि)संतिसंविजमाणापच्चवाया भवंति, तम्हासे संजए नियंठे तहप्पगारं पुरेसंखडिं संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए ।२३८ से भिक्खू वा अनयरि संखडिं सुच्चा निसम्म संपहावइ उस्सुयभूएण अप्पाणेणं, धुवा संखडी, नो संचाएइ तत्था इरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिग्गाहित्ता आहारं आहारित्तए, माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करिजा, से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थियरेयरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसियं वेसियं पिंडवायं पडिगाहित्ता आहारं आहारिज्जा २३९।से भिक्खू वा २ से जं पुण जाणिज्जा गाभवा जाव रायहाणिं वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव रायहाणिसि वा संखडी सिया तंपिय गाभं वा जावरायहाणिं वा संखडि संखडिपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए, केवली बूया आयाणमेयं, आइनाऽवमाणं संखडिं अणुपविस्समाणस्स पाएण वा पाए अवंतपुव्वे भवइ हत्थेण वा हत्थे संचालियपुव्वे भवइ पाएण वा पाए आवडियपुब्वे भवइ सीसेण वा सीसे संघट्टियपुव्वे भवइ काएणवा काए संखोभियपुव्वे भवइ दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वाकवालेण वा अभिहयपुव्वे भवइ सीओदएण वा उस्सित्तपुब्वे भवइ रयसा । परिधासियपुव्वे भवइ अणेसणिज्जे वा परिभुत्तपुब्वे भवइ अन्नेसिं वा दिजमाणे पडिग्गाहियपुव्वे भवइ तम्हा से संजए नियंठे तहथ्यगारं आइनावमाणं संखडि संखडिपडियाए नो ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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