Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोयमाणेहिं बहवे समणमाहण जाव वणीमगे पगणिय २ समुहिस्स तत्त २ अगारीहिं अगाराई चेझ्याई भवन्ति तं आएसणाणि जाव|| गिहाणिवा जे भयंतारो तहप्पगाराई आएसणाणिवा जाव गिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहडेहि, अयमाउसो ! महावजकिरिया यावि भवइ । ३०६ । इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया जावतं सद्दहमाणेहिं तं पत्तियमाणेहिं तं रोयमाणेहिं बहवे समणमाहणअतिहिकिवणवणीमगे पगणिय २ समुहिस्स तत्थ २ अगाराई चेझ्याई भवंति तं० आएसणाणि वा जाव भवणगिहाणि वा, जे भयंतारो तहप्पगाराणि आएसणाणिवा जाव भवणगिहाणि वा उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं०, अयमाउसो! सावजकिरिया यावि भवइ || ३०७ । इह खलु पाईणं वा ४ जाव तं रोयमाणेहिं एगं समजायं समुद्दिस्स तत्थ २ अगारीहिं अगाराई चेइयाई भवन्ति० ० आएसणाणि जाव गिहाणि वा महया पुढविकायसमारंभेणं जाव महया तसकायसमारंभेणं महया विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहि, तंजहा छायणओ लेवणओ संथारदुवारपिहणओ सीओदए वा पट्टवियपुव्वे भवइ अगणिकाए वा उज्जालियपुव्वे भवइ, जे भयंतारो तह० आएसणाणि वा० उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहडेहिं० दुपक्खं ते कम्म सेवंति, अयमाउसो! महासावजकिरिया यावि भवइ |१३०८।इह खलु पाईणं वा० रोयमाणेहिं अपणो सयट्ठाए तत्त्थ २ अगारीहिं जाव उज्जालियपुव्वे भवइ, जे भयंतारो तहप्प० आएसणाणि वा० उवागच्छंति इयराइयरेहिं पाहुडेहिं० एगपक्खं ते कम्मं सेवंति, अयमाउसो ! अप्पसावजकिरिया यावि भवइ ॥ एवं खलु तस्स०३०९।अ० २ ३०२ ॥ ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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