Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पच्चपिणित्तए, से जं पुण संथारगं जाणिज्जा सअंडं जव ससंताणयं तहप्प० संथारगं नो पच्चप्पिणिजा । ३२७ । से भिक्खू०| अभिकंखिज्जा सं० से जं० अप्पंडं० तहप्पगारं० संथारगं पडिलेहिय २५०२ आयाविय २ विहणिय २ तओ संजयामेव पच्चप्पिणिज्जा ।३२८ । से भिक्खू वा० समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगामं दूइजमाणे वा पुव्वामेव पन्त्रस्स उच्चारपासवण भूमिं पडिलेहिज्जा, केवली बूया आयाणमेयं अपडिलेहियाए उच्चारपासवण भूमीए से भिक्खू वा० राओ वा वियाले वा उच्चारपासवणं परिद्ववेमाणे पयलिज वा २, से तत्थ पयलमाणे वा २ हत्थं वा पायं वा जाव लूसेज्ज वा पाणाणि वा ४ ववरोविज्जा, अह भिक्खूणं पु० जं पुव्वामेव पन्त्रस्स उ० | भूमिं पडिले हिज्जा । ३२९ । से भिक्खू वा २ अभिकंखिज्जा सिज्जासंथारगभूमिं पडिलेहित्तए नन्नत्थ आयरिएण वा उ० जाव गणावच्छेयएण वा बालेण वा वुड्ढेण वा सहेण वा गिलाणेण वा आएसेण वा अंतेण वा मज्झेण वा समेण वा विसमेण वा पवाएण वा निवारण वा, तओ संजयामेव पडिलेहिय २ पमज्जिय २ तओ संजयामेव बहुफासुयं सिज्जासंथारगं संथरिजा । ३३० । से भिक्खू वा० बहु० संथरिता अभिकंखिज्जा बहुफासुए सिज्जासंथारए दुरुहित्तए । से भिक्खू बहु० दुरूहमाणे पुव्वामेव ससी सोवरियं कायं पाए य पमज्जिय २ तओ संजयामेव बहु. दुरूहिज्जा, तओ संजयामेव बहु० सइज्जा । ३३१ । से भिक्खू वा० बहु० सयमाणे नो अन्नमन्नस्स हत्थेण हत्थं पाएण पायं कारण कार्य आसाइज्जा, से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु० सइज्जा ॥ से भिक्खू वा उस्सासमाणे वा नीसासमाणे वा कासमाणे वा छीयमाणे वा जंभायमाणे वा उड्डोए वा वायनिसग्गं वा करेमाणे पुव्वामेव आसयं वा पोसयं वा पाणिणा परिपेहिता ॥ श्री आचाराङ्ग सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधिन ८१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147