Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केयइवणंसिवा अंबव० असोगव० नागव० पुन्नागव० चुल्लगव० अन्नयरेसुतह० पत्तोवेएसु वा पुष्फोवेएसुवा फलोवेरसुवा बीओवेएसु|| वा हरिवेएसु वा नो ३० । ३८९ । से भि० सयपाययं वा परपाययं वा गहाय सेतमायाए एगंतमवक्कमे अणावायंसि असंलोयंसि अपपाणंसि जाव मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि वा उवस्सयंसि तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिजा, से तमायाए एगंतमवक्कमे अणाबाहंसि जावसंताणयंसिअहारामंसिवा झामथंडिलंसि वा अन्यरंसि वा तह० थंडिल्लंसि अचित्तंसितओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिजा, एयं खलु तस्स० सया जइज्जासित्तिबेमि । ३९०। उच्चारप्रश्रवणसप्तसप्तकं ३ (१०) ॥ से भि० मुइंगसहाणि वा नंदीस० झल्लरीस० अन्त्यराणि वा तह० विरूवरूवाई सदाई वितताई कनसोयणपडियाए नो अभिसंधारिजा गमणाए से भि० अहावेगइयाई सहाई सुणेइ, तं० वीणासदाणि वा विपंचीस० पीपी (बद्धी) सगस० तूणयसदा० वण (वीणि) यस० तुंबवीणियसहाणि ढंकुणसहाई अन्त्यराई तह० विरूवरूवाई सदाई वितताई कण्णसोयपडियाए नो अभिसंधारिजा गमण से भि० अहावेगडयाई सहाईसणेड, तं० तालसहाणिवा कंसतालसहाणिवा लत्तियसहा० गोधियस० किरिकिरियास० अन्नयरा० तह० विरूव० सदाणि कण्ण० गमणाए ॥से भि० अहावेग० ० संखसहाणिवा वेणु० वंसस० खरमुहिस० परिपिरियास० अन्नय० तह० विरूव० सद्दाई झुसिराई कन० । ३९११ से भि० अहावेग० तं० वप्पाणि वा फलिहाणि वा जाव सराणि वा सागराणि वा सरसरपंतियाणि वा अन्न० तह० विरूव० सद्दाई कण्ण० ॥से भि० अहावे० त० कच्छाणि वाणूमाणि वा गहणाणि वा वणाणि ॥श्रीआवाराङ्ग सूत्र | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147