Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आउरं लोगमायाए चइत्ता पुव्वसंजोगं हिच्चा उवसमं वसित्ता बंभचेरंसि वसु वा अणुवसु वा जाणितु धम्मं अहा तहा,|| अहेगे तमचाई कुसीला । १७८ । वत्थं पडिम्गहं कंबलं पायपुंछणं विस्मिजा अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए, कामे ममायमाणस्स इयाणिं वा मुहुत्तेण वा अपरिमाणाए भेए, एवं से अंतराएहिं कामेहिं आकेवलिएहि, अवइना चेए ।१७१।अहेगे| धम्ममायाय आयाणप्पभिइसु पणिहिए चरे अप्पलीयमाणे दढे सव्वं गिद्धिं परित्राय, एसपणए महामुणी अइअच्च सव्वओ संगं,न महं| अस्थिति इय एगो अहं, अस्सिं जयमाणे इत्त विरए अणगारे सव्वओ मुंडे रीयंते, जे अचेले परिवुसिए संचिक्खइ ओमोयरियाए, से आकुढे वा हए वा लुंचिए (प्र० लूसिए) वा पलियं पकत्थ अदुवा पकत्थ अतहेहिं सदफासेहिं, इय संखाए एगयरे अनयरे अभिनाय तितिक्खमाणे परिव्वए, जे य हिरी अहिरीमाणा(प्र० मणा)।१८०चिच्चा सव्वं विसुनियं फासे समियदसणे, एए भोणगिणा वुत्ता जे लोगंसि अणागमणधम्मिणो आणाए मामगं धम्म, एस उत्तरवाए इह माणवाणं वियाहिए, इत्थोवरए तं झोसमाणे आयाणिज परिन्नाय परियारण विगिंचइ, इह एगेसिं एगचरिया होइ तत्थियाइयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसण सव्वेसणाए से मेहावी परिव्वए सुब्धि अदुवा दुब्धि, अदुवा तत्थ भेरवा पाणा पाणे किलेसंति, ते फासे पुट्ठो धीरे अहिशासिज्जासित्तिबेमि । १८१। अ० ६३०२॥ एयंखु मुणी आयाणं सया सुयक्खायधम्मे विस्यकप्पे निझोसइत्ता जे अचेले परिवुसिए तस्सणं भिक्खुस्स नो एवं भवइ परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि सुत्तं जाइस्सामि सूईजाइस्सामि संधिस्सामि सीविस्सामि उकसिस्सामि वुक्कसिस्सामि परिहिस्सामि ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147