Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सलिलं अपारयं, महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं । अहे य (५० अजेव) णं परिजाणाहि पंडिए, से हू मुणी अंतकडेत्ति वुच्चई ॥१४५॥ जहा हि बद्धं इह माणवेहिं, जहा य तेसिं तु विभुक्ख आहिए ।अहा तहा बन्धविमुक्ख जे विऊ, से हू मूणी अंतकडेत्ति वुच्चई ॥१४६॥ इमंमि लोए परए य दोसुवि, न विजई बंधण जस्स किंचिवि । से हू निरालंबणमप्पइहिए, कलंकलीभावपहं विभुच्चइ ॥ १४७ ॥ त्तिबेमि विमुक्तयध्ययनं १६ ( २५)चूलिका ४ ॥इति श्री आचाराङ्गम् सूत्रं संपूर्ण प्रभु महावीर स्वामीनीपट्ट परंपरानुसार कोटीगणवैरी शाखा- चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक-सैलाना| नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ़ प्रतापी, सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्यविजेता-मालवोध्धारक महोपाध्याय श्रीधर्भसागरजी म.सा. शिष्य आगमविशारद-नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. शिष्य शासन प्रभावक-नीडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्तिरसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघु गुरु भ्राता प्रवचन प्रभावक पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागर सू.म. शिष्य पू. गणिवर्य श्री पूर्णचन्द्र सागरजी म.सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं.२०५८/५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशक दिने पू. सागरजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे. प्रशस्ति संपादक श्री For Private And Personal Use Only

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