Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|आयारगोयर माइक्खंति, नाणभट्ठा दंसणलूसिणो । १८७। नममाणा वेगे जीवियं विष्परिणामंति, पुट्ठावेगे जीवियस्सेव कारणा, निक्खतंपि तेसिं दुन्निक्खतं भवइ, बालवयणिज्जा हु ते नरा पुणो पुणो जाई पकम्पिंति, अहे संभवंता विद्यायमाणा अहमंसीति विउक्कसे उदासीणे फरुसं वयंति, पलियं पक (प्र० गं) थे अदुवा पकथे अतहेहिं, तं वा मेहावी जाणिज्जा धम्मं । १८८ । अहम्मट्ठी तुमंसि नाम बाले आरंभट्टी अणुवयमाणे हण पाणे घायमाणे हणओ यावि समणुजाणमाणे, घोरे धम्मे, उदीरिए उवेहड़ णं अणाणाए, एस विसन्ने | वियद्दे वियाहिएत्तिबेमि । १८९। किमणेण भो, जणेण करिस्सामित्ति मन्त्रमाणे, एवं एगे वइत्ता मायरं पियरं हिच्चा नायओ य परिग्गहं वीरायमाणा समुट्ठाए अविहिंसा सुव्वया दंता (समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचणा अपुत्ता अपसुया अविहिंसगा सुव्वया दंता | परदत्त भोइणो पावं कम्मं न करेस्सामो समुट्ठाए पा० ) पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे, वसट्टा कायरा जणा लूसा भवंति, अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, से समणो भवित्ता विब्भंते २ पासहेगे समन्नागएहिं सह असमन्नागए नममाणेहिं अनममाणे विरएहिं अविरए दविएहिं अदविए, अभिसमिच्चा पंडिए मेहावी निट्टियट्टे वीरे आगमेणं सया परकमिजासित्तिबेमि । १९० ॥ अ० ६ ३० ४ ॥
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से गिहेसु वा गिहंतरेसु वा गामेसु वा गामंतरेसु वा नगरेसु वा नगरंतरेसु वा जणवयेसु वा जणवयंतरेसु वा गामनयरंतरे वा | गामजणवयंतरे वा नगर जणवयंतरे वा संतेगइया जणा लूसगा भवंति अदवा फासा फुसंति ते फासे पुढे वीरो अहियासए, ओए समियदंसणे, दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं आइक्खे, विभा किट्टे वेयवी जे खलु समणे बहुस्सुए बज्झागमे
॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
३२.
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