Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|वितिगिच्छसमावनेणं अमाणेणं नो लहइ समाहिं, सिया वेगे अणुगच्छंति असिता वेगे अनुगच्छंनि,अणुगच्छमाणेहिं अणणुगच्छमाणे|| कह न निविजे ? । १६२। तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं । १६३। सढिस्म णं रमणुनस्स संपव्वयमाणस्स सभियंति मनमाणस्स एगया समिया होई १ समियंति मत्रमाणस्स एगया असमिया होई २ असमियंति मन्त्रमाणस्स एगया समिया होई ३ असमियंति मन्त्रमाणस्स एगया असमिया होई ४ समियंति मत्रमाणस्स समिया वा असमिया वा समिआ होई उवेहाए ५ असमियंति|| भन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उहाए ६, उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए, इच्चेवं तत्थ संधी झोसिओ भवइ, से उद्वियस्स ठियस्स गई समणुपासह, इत्थवि बालभावे अपाणं नो उवदंसिजा । १६४। तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वंति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अजावेयव्यंति मनसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं परियावेथव्वंति मनसि, एवं परिधित्तव्वंति मनसि, जं उद्दवेयव्वंति मनसि, अंजू चेयपडिबुद्धजीवी तम्हानहंता नविघायए, अणुसंवेयणमप्पाणेणं जं हंतव्वं नाभिपत्थए ।१६५/ जे आया से विनाया जे विनाया से आया, जेण वियाणइ से आया,तं पडुच्च पडिसंखाए एसआयावाई समियाए परियाए वियाहिएत्तिबेमि ॥१६६। अ०५ ३०५॥
अणाणाए एगे सोवढाणा आणाए एगे निरुवढाणा एयं ते मा होउ एयं कुसलस्स दसणं, तहिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे|| तस्सन्नी तन्निवेसणे । १६७। अभिभूय अदक्खू, अणभिभूए पभू निरालंबणयाए, जे महं अबहिमणे, पवाएण पवायं जाणिजा | ॥श्रीआचाराङ्ग सूत्र
पू. नागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147