Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | उन्नयमाणे य नरे महया मोहेण मुज्जइ, संबाहा बहवे भुज्जो २ दुरइक्कमा अजाणओ अपासओ, एयं ते मा होउ एयं कुसलस्स दंसणं, तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरक्कारे तस्सन्त्री तन्निवेसणे जयं विहारी चित्तनिवाई पंथनिज्झाई, पलिबाहिरे पासिय पाणे गच्छिज्जा । १५८ । से | अभिक्कममाणे पडिक्क्रमाणे संकुचमाणे पसारेमाणे विणिवट्टमाणे संपलिजमाणे एगया गुणसमियस्स रीयओ कायसंफासं समणुचित्रा एगतिया पाणा उद्यायंति इहलोगवेयणविज्जावडियं, जं आउट्टिकथं कंमं तं परित्राय विवेगमेइ, एवं से अप्पमाएण विवेगं किट्टइ वेयवी । १५९ । से पभूयदंसी पभूयपरित्राणे उवसंते समिए सहिए सयाजए दृटुं विष्पडिवेएड अप्पाणं, किमेस जणो करिस्सइ ?, एस से परमारामो जाओ लोगंमि इत्थीओ, मुणिणा हु यं पवेइयं उब्बाहिज्जमाणे गामधम्मेहिं अवि निब्बलासए अवि ओमोयरियं कुज्जा अवि उड्ढं ठाणं ठाइज्जा अवि गामाणुगामं दुइज्जिज्जा अवि आहारं वुच्छिंदिज्जा, अवि चए इत्थीस मणं, पुव्वं दंडा पच्छा फासा पुव्वं फासा पच्छा दंडा, इच्चेए कलहा संगयरा भवंति, पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाएत्तिबेमि, से नो काहिए नो पासणिए नो | संपसारणिए नो मामए णो कयकिरिए वइगुत्ते अज्झष्पसंवुडे परिवज्जइ सया पावं, एवं मोणं समणुवासिज्जासित्तिबेमि । १६० । अ० ५३०४ ॥ से बेमि तंजहा अवि हरए पडिपुण्णे समंसि भोमे चिट्ठइ उवसंतरए सारक्खमाणे, से चिट्ठइ सोयमज्झगए, से पास सव्वओ गुत्ते, पास लोए महेसिणो जे य पन्त्राणमंता पबुद्धा आरम्भो वरया, सम्ममेयंति पासह, कालस्स कंखाए परिव्वयंतित्तिबेमि । १६१ । ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ २६ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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