Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie म्या है| रओ दूमियघट्ठमडे विचित्तउल्लोयचिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे बहुसमसुविभत्सदेसभाए पंचवन्नसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुकधूनमघमघंतगंधुधुयाभिरामे सुगंधिवरगंधिए गंधव ११शतके प्रतिः 15 वटिभृग तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि सालिंगणवहिए उभओ विब्योयणे दुहओ उन्नए मज्झेणयगंभीरे गंगापुलि-18| उद्देशान // 979 // णवालुयउद्दालसालिसए उवचियखोमिवदुगुल्लपपडिच्छन्ने सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणगरू- // 979 // यबूग्णवणीयतूलफासे सुगंधवरकुसुम चुन्नसयणोक्यारकलिए अद्धरत्तकालसमसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी 2 अयमेयारूवं ओरालं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगलं मस्सिरीय महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा / / [प्र०] हे भगवन् ! ए पाल्योपम तथा सागरोपमनो क्षय के अपचय थाय छे ? [उ.] हा, थाय . [प्र०] हे भगवन् ! एम |शा हेतुथी कहो छो के पल्योपम अने सागरोपमनो यावत् अपचय थाय छ ? [उ०] हे सुदर्शन ! ए प्रमाणे खरेखर ते काले, ते समये हस्तिनागपुर नामे नगर हतुं. वर्णन. त्यां सहस्त्राप्रवन नामे उद्यान हतुं. वर्णन. ते हस्तिनागपुर नगरमा बल नामे राजा हतो. वर्णन. ते बल राजाने प्रभावती नामे राणी हती. तेना हाथ पग सुकुमाल हता-इत्यादि वर्णन जाणवू. यावत् ते विहरती हती. त्यार बाद अन्य कोइपण दिवसे तेवा प्रकारना, अंदर चित्रवाळा, बहारथी घोळेला, घसेला अने सुंबाळा करेला, जेनो उपरनो भाग विविध चित्रयुक्त अने नीचेनो भाग सुशोभित के एवा, मणि अने रखना प्रकाशथी अंधकाररहित, बहु समान अने सुविभक्त मागवाला, मुकेला पांच वर्णना सरस अने सुगंधी पुष्पपुंजना उपचार बडे युक्त, उत्तम कालागुरु, कीन्दरु अने तुरुष्क-शिलारसना धूपथी चोतरफ फेलायेला सुगधना उद्भचथी सुंदर, सुगंधि पदार्थोथी सुवासित थयेला, सुगंधि द्रव्यनी गुटिका जेवा ते वासघरमा तकीयास MACHAR For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238