Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kalassagarsun Gyarmandie १२शतके देश // 1.24 // * 102 CHARCH तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला जेणेव संखे समणोबासए तेणेव उवागकछह 2 गमणागमणाए पडिकमा ग०२ संखं समणोवासगं बंदति नमसति वं.न०एवं क्यासी-एवं बलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असणजाब साइमे उवक्खडाविए तं गच्छामो ण देवाणुप्पिया! तं विउलं असणे जाव साइमं आसाएमाणा जाब पडिजागरमाणा विहरामो, तए णं से सखे ममणोवासए पोक्खलिं समणोबासगं एवं बयासी-णो खलु कप्पह देवाणुप्पिया! तं विउलं असणं पाणं खाइम साइम आसाएमाणस्स जाव पडिजागरमाणस्स विहरितए, कप्पह मे पोसहमालाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए, तं छंदेणं देवाणुप्पिया! तुम्भे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा जाब बिहरह / त्यार बाद ते पुष्कलि श्रमणोपासके ज्यां पोषधशाला छे, अने ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आबी, गमनागमनने (जता आवतां कोइ जीवनी हिंसा करी होय तेने) प्रतिक्रमी शंख श्रमणोपासकने चांदी अने नमीने तेने आ प्रमाणे को-'हे देवानुप्रियाए प्रमाणे खरेखर अमे घणो अशन, यावत्-स्वादिम आहार तैयार कराव्यो छे, तो हे देवानुप्रिय ! आपणे जइए, अने पुष्कळअशन, यावत्स्वादिम आहारनो आस्वाद लेतायावत-पोषधनु पालन करता विहरीए.त्यार बाद ते शंख श्रमणोपासके ते पुष्कलि श्रपणोपासकने आ प्रमाणे कडं-'हे देवानुप्रिय ! पुष्कळ अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावत् पोषधनु पालन करी विहरखुमने योग्य नथी, मने तो पोषधशालामा पोषधयुक्त थइने यावत् -विहरवु योग्य छे. माटे हे देवानुप्रिय ! तमे इच्छा प्रमाणे घणा अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारनो आस्वाद लेता यावद् विहरो.' 45 For Private and Personal Use Only

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