Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir है गरहह अवमन्नह, संखे णं समणोवासए पियधम्मे चेव दधम्मे व सुदक्खुजागरियं जागरिए (सू० 438) // त्यार बाद [पूर्वे कहेला] ते श्रमणोपासको आवती काले यावत् सूर्योदय समये स्नान करी, बलिफर्म करी यावत् शरीरने अलं- १वके व्याख्याप्रति 18] कृत करी पोत पोताना घरथी नीकळी एक स्थळे मेगा थाय छे, एक स्थळे भेगा थइने-इत्यादि बधु प्रथम निर्गमवत् जाणवु यावद | 81 उद्देशान Rel (भगवंत महावीरनी पासे जइ) तेमनी पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने तथा ते समानेर धर्मकथा कही, यावत् 'ते आज्ञाना आराधक थाय छे' त्यां सुधी जाणवु त्यार बाद ते श्रमणोपासको श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी, हृष्ट अने तुष्ट थया, अने उभा थइ श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी, ज्यां शंख श्रमणोपासक छे त्यां आव्या; आवीने शंख श्रमणोपासकने तेओए एम कयु के-'हे देवानुप्रिय! तमे गइ काले अमने एम कडं हतुं के, 'हे देवानुप्रियो। तमे पुष्कळ अशनादि आहारने तैयार करावो, यावद्-आपणे विहरीशुं, त्यार बाद तमे पोषधशालामां यावद् विहर्या, तो हे देवानुप्रिय! | तमे अमारी ठीक हीलना (हांसी) करी.' पछी 'हे आर्यो।' एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते श्रमणोपासकोने आ प्रमाणे का-'हे आर्यों!' तमे शंख श्रमणोपासकनी हीलना, निंदा, खिंसना, गहां अने अवमानना न करो, कारण के ते शंख श्रमणोपासक धर्मने विषे प्रीतिवाळो अने दृढतावाळो के, तथा तेणे [ प्रमाद अने निद्राना त्यागथी] सुदृष्टि-झानीनुं जागरण करेल . 438 // मंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भ. महा. व. न. 2 एवं क्यासी-कहबिहा गंमते ! जागरिया पण्णत्ता', | गोयमा तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा-बुद्धजागरिया अबुद्धजागरिया सुदक्खुजागरिया, से केण एवं बु. तिषिहा जागरिया पण्णसा, तंजहा-बुद्धजा.१ अबुद्धजा०२ सुदक्खु. 31, गोयमा ! जे इमे अरिहंता -CCIM + %EX For Private and Personal Use Only

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