Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पाण्या- उद्देश:१२ // 1011 // 1015 // मह पदिनिक्वमित्ता पहिया. जणवयविहारं विहरह / तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नगरी होत्था, वनओ, तत्थ णं संखवणे णाम चेहए होत्या, वन्नओ, तस्स णं संखवणस्स अदूरसामंते पोग्गले नाम परिव्वायए परिवसति रिउब्वेदजजुरवेदजावनएसुसुपरिनिहिए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उठं पाहाओ जाव आयावेमाणे विहरतिातएणं तस्स पोग्गलस्स छडूंछट्टेणं जाव आयावेमाणस्स पगतिभड्याए जहासिवस्स जाव विभंगे नामं अन्नाणे समुप्पन्ने, से गं तेणं विभंगेणं अनाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठितिं जाणति पासति / तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अपमेयारूवे अब्भस्थिए जाव समुप्पजिस्था-अस्थि णं मम अइसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, देवलोएमु णं देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाय [उकोसेणं] असंखेजसमयाहिया उकोसेणं दससागरोबमाई ठिती पन्नता, तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य, एवं संपेहेति एवं 2 आयावणभूमीओ पचोरुहह आ० 2 तिदंडकुंडिया जाब घाउरत्ताओ य गेण्डा गे०२.जेणेब आलभिया णगरी जेणेव परिब्वायगावसहे तेणेव उवागच्छह उव.२ भंडनिक्खेवं करेति | भं.२ आलभियाए नगरीए सिंघाडग जाव पहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खह जाब परूवेह-अस्थि ण देवाणुपिया! | ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुष्पन्ने, देवलोएसुणं देवाणं जहनेणं दसवाससहस्साई तहेव जाव वोच्छिना देवा य दवेलोगा य / तए णं आलभियाए नगरीए एएणं अभिलावेणं जहा सिवस्स तं चेव से कहमेयं मन्ने एवं ?, सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया, भगवं गोयमे तहेब भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसई निसामेह तहेव बहुजण FACHAR CCES+5+ For Private and Personal Use Only

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