Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 198
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir व्याख्या- सप्रति // 1033 // १२शसके उद्देशार % भगवंत महावीरनुं दर्शन आपणा कल्याण माटे] थशे. त्यार बाद जैम देवानंदाए ऋषभदत्तना वचननो स्वीकार कर्यो तेम मगावती | देवीए ते जयंती श्रमणोपासिकाना वचननो स्वीकार कयों, स्यार पछी ते मृगावती देवीए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कधु-हे देवानुप्रियो ! वेगवाळु, जोतरसहित यावत् धार्मिक श्रेष्ट यान जोडीने जलदी हाजर करो,' यावत् ते कौटुबिक पुरुषो यावत् | हाजर करे छ, अने तेनी आज्ञा पाछी आपेले. त्यार बाद ते मृमावती देवी ते जयंती श्रमणोपासिकानी साथे स्वान करी, बलिकर्म-16 पूजा करी, यावत्-शरीरने शणगारी घणी कुन्ज दासीओ साथे यावत् अंतःपुरथी बहार नीकळे छ, नीकळी ज्यां बहारनी उपस्थानशाला छे, अने ज्यां धार्मिक श्रेष्ठ वाहन तैयार उभं छे. त्यां आवी यावत् ते वाहन उपर चढी. त्यार बाद जयंती श्रमणोपासिकानी साथे धार्मिक श्रेष्ठ यान पर चडेली ते मृगावती देवी पोताना परिवारयुक्त ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे यावत्-ते धार्मिक श्रेष्ठ वाहनधी नीचे उतरे छे. पछी जयंती श्रमणोपासिकानी साथे ते मगावती देवी धणी कुब्ज दासीओना परिवार सहित देवानंदानी पेठे यावद् बांदी, नमी उदायन राजाने आगळ करी त्यांज रहीनेज यावद् पयुपासना करे ने. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन गजाने, मृगावती देवीने, जयंती श्रमणोपासिकाने अने ते अत्यन्त मोटी परिषदने यावद् धर्मोपदेश कर्यो, यावद परिषद् पाछी गइ, उदायन राजा अने मृगावती देवी पण पाछा गया. / / 442 // नए ण सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंलियं धम्मं सोचा निसम्म हतुहा इसमर्ण भ. महावीरं वन.२ एवं वयासी-कहिन भंते ! जीवा गरुयत्तं हब्वमागच्छन्ति, जयंती! पाणाइवारण जाव मिच्छादसणमल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हवं. एवं जहा परमसए जाब वीयीवयंति / भवसिद्धियत्तण भते। ARNESS CA For Private and Personal Use Only

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