Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandie है|१२शत व्याख्याबप्रति // 1039 // मी उद्देश ते हेतुथी एम कहुं छु-इत्यादि तेज प्रमाणे कहे, यावत् केटलाक जीवोनुं दक्षपणु सारुं छे. [प्र०] हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियने वश थवाथी पीडित धयेलो जीव शुं बांधे ? [उ०] हे जयंती ! जेम क्रोधने वश थयेला जीव संबन्धे कंधु तेम अहीं पण जाणवं, यावत् | ते संसारमा भमे के. ए प्रमाणे चक्षुइन्द्रियने वश थयेला अने यावत् स्पर्शेन्यिवश थयेला जीव संबन्धे पण जाणवू, यावत् ते संसारमा भमे छे. त्यारबाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीर पासेवी ए बात सांभळी, हृदयमा अवधारी, हर्षवाळी अने संतुष्ट थई-इत्यादि (चाकी) बधु देवानंदानी पेठे जाणवू, यावत् तेणे प्रवज्या ग्रहण करी अने सर्व दुःखथी मुक्त थई. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् / ते ए प्रमाणे के. // 443 // भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणी श्रीमत्त भगवतीमूत्रना 12 मा शतकमा वीजा उद्देशानो मृलार्थ संपूर्ण थयो. // 1039 // FACHAR उद्देशक 3. रायगिहे जाव एवं वयासी-कह णं भंते ! पुढवीओ पन्नत्ताओ?, गोयमा! सत्त पुढवीओ पण्णत्ताओ, तंजहापढमा दोचा जाव सत्तमा / पढमा णं भंते ! पुढवी किंनामा किंगोता पण्णत्ता!, गोयमा! घम्मा नामेणं रयणप्पभा गोत्तणं एवं जहा जीवाभिगमे पढमो नेरहयउद्देसओ सोचेव निरवसेसो भाणियब्बो जाव अप्पाबहुगंति। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति // (सूत्रं 444) // [प्र. राजगृह नगरमा ( भगवान् गौतमे) यावद् आ प्रमाण पूछ्यु-हे भगवन् ! केटली पृथिवीओ कही है ? [उ.] हे For Private and Personal use only

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