Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 200
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir दा व्याख्याअप्रप्तिः / 11035 // उद्देशान // 1035 // | नहिं थाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे तमे शा हेतुथी कहो छो के 'बधाय पण भवसिद्धिको सिद्ध थशे, अने लोक भवसिद्धिक जीवोथी रहित नहीं थाय' 1 [उ.] हे जयंती जेमके सर्वांकाशनी श्रेणी होय, ते अनादि, अनंत, बन्ने बाजुए परिमित अने बीजी | | श्रेणीओथी परिघृत होय, तेमांथी समये समये एक परमाणु पुद्गलमात्रखंडो काढतां काढतां अनन्त उत्सर्पिणी अने अनन्त अवस. पिणी सुधी काढीए तोपण ते श्रेणि खाली थाय नहीं; ते प्रमाणे हे जयंती! हेतुथी एम कहेवाय छे के, बधाय भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे, तो पण लोक भवसिद्धिक जीवो विनानो थशे नहि. सुत्तत्तं भंते ! साह जागरियत्त साह, जयंती ! अत्येगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साह अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साह, से केणद्वेणं भंते! एवं बुच्चइ अत्धेगइयाणं जाव साह , जयंतीजे इमे जीवा अहम्मिथा अहम्माणुया अहम्मिट्ठा अहम्मक्खाई अहम्मपलोई अहम्मपलज्जमाणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति एएसिणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू, एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहूर्ण पाणभूयजीवसत्ताणं दुक्खणयाए जोयणयाए जाव परियावणयाए बदति, एएणं जीवासुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं बातदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एएसि जीवाणं सुत्तत्तं साहू, जयंती। जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति गएसिण जीवाणं जागरियत्त साह, एपण जीवा जागरा समाणा वहणं पाणाणं जाव सत्ताणं अदुक्खणयाए जाव अपरियावणियाए वहति, ते णं जीवा जागरमाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहहिं धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति, एए ण जीवा जागरमाणा 36+SHESARice For Private and Personal Use Only

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