Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: 

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Page 191
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १२शतके उद्देशन 1025 // | श्रमणोपासको ते विपुल अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने आस्वादता यावद्-विहरे छे. त्यारबाद मध्य रात्रिना समये बाख्या ट्र धर्म जागरण करता ते शंख श्रमणोपासकने आवाप्रकारनो आ विचार यावत् उत्पन्न थयो-'आवती काले यावत् सूर्य उगवाना समय प्रवतिः श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी यावत् पर्युपासना करी त्यांची पाछा आवीने पाक्षिक पोषध पारवो श्रेयस्कर छ,-एम विचार // 1.16 // करे छे, एम विचारी आवती काले यावत सूर्योदय समये पोषधशालाथी पहार नीकळी शुद्ध, बहार जवा योग्य तथा मंगलरूप वस्त्रो उत्तम रीते पहेरी पोताना घरथी बहार नीकळी पगे चाली श्रावस्ती नगरीना मध्यभागमां थइने जाय छे, यावत् पर्युपासना करे छ, अहिं [पोषधयुक्त होवाथी] तेने अभिगमो नथी. ताण ते समणोवासगा कल्लं पादु० जाव जलते पहाया कयबलिकम्मा जाब सरीरा सएहिं सरहिं गेहे हितो पडिनियमति माहि२ एगयओ मिलायति एगयओ२ सेसं जहा पढम जाव पज्जुवासंति / तए ण समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे या धम्मकहा जाव आणाप आराहए भवति / तए ण ते ममणोवासगा ममणस्म भगवओ महावीरस्म अतियं धम्म सोचा निमम्म हट्टतुट्टा उट्ठाए उट्टेति उ०२ समणं भगवं महावीरं वदंति नमसंति ०२त्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छन्ति 2 संखं समणोवासयं एवं वयासी-तुम देवाणुप्पिया: हिज्जा अम्हेहिं अप्पणा चेव एवं वयासी-तुम्हे णं देवाणुप्पिया! विउलं असणं जाव विहरिस्सामो, तए णं तुम पोसहसालाए जाव विहरिए, तं सुटु णं तुम देवाणुप्पिया! अम्हं हीलसि, अजोत्ति समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी-माणं! अजो तुझे संख समणोवामगं होलह निंदह खिंसह WHABCN RASACA For Private and Personal Use Only

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