Book Title: Vyakhyapragnapti Sutra Part 04
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher:
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir माख्याप्राप्तिः // 1.2 // १२वतके उद्देश // 1020 नथी, पण मारी पोषधशालामा ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि अने सुवर्णनो त्याग करी माला, उद्वर्तन अने विलेपनने छोडी शस्त्र अने मुसल विगेरेने मूकीने तथा डामना संथारा सहित मारे एकलाने-बीजानी सहाय शिवाय-पोषधनो स्वीकार करी विहर श्रेय छे.' एम विचार करी, श्रावस्ती नगरीमा ज्यां पोतार्नु घर , अने ज्यां उत्पला श्रमणोपासिका रहे छे, त्यां आवी उत्वला श्रमणोपासिकाने पूछी, ज्यां पौषधशाला छे त्यां जइ, पोषधशालामा प्रवेश करी, पोषधशालाने प्रमार्जी निहार अने पेशाब करवानी जग्याने प्रतिलेही-तपासीने डामनो संथारो पाथरी तेना उपर बेठो, बेसीने पोषधशालामा पोषधग्रहण करी ब्रह्मचर्यपूर्वक यावत् पाक्षिक पोषधर्नु पालन करे छे. ___ तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साई गिहाई तेणेव उवाग०२विपुलं असणं पाणं खाइम | साइम उवक्खडावेंति उ० 2 अन्नमन्ने सदाति अ० 2 एवं वधासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असणपाणखाइमसाइमे उबक्खडाबिए,संखे य गं समणोवासए नो हव्यमागकछह, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं संवं समणोवासगं सहावेत्तए / तए णं से पोक्वली ममणोबासए ते समणोवासए एवं बयासी-अच्छन्तु णं तुझे देवाणुप्पिया! सुनिवुया वीसत्या अहन्नं संखं समणोवासगं सद्दावेमित्तिकटु तेसिं ममणोवासगाणं अंतियाओ पडिनिक्खमति प०२ सावत्थीए नगरीए मझमझेण जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे तेणेव उवाग०२ संखस्स समणोवासगस्म गिहं अणुपवि? / तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलि समणोवासयं एजमाणं पासह पा०२ हट्टतुट्ठ आसणाओ अ भुढेइ अ०२त्ता सत्तट्ट पपाइं अणुगच्छद 2 पोक्वलिं समणो. For Private and Personal use only

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